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दुनिया की वो जगह, जो किसी भी देश का हिस्सा नहीं, जानिए क्यों?

जमीन के लिए तो दुनिया के कई देशों में आए दिन विवाद होते रहते हैं। चाहे वो भारत हो, पाकिस्तान हो, चीन, नेपाल, रूस-यूक्रेन, गाज़ा या कोई और देश इतिहास से लेकर अब तक जितनी भी बड़े युद्ध लड़े गए हैं ज्यादातर वो जमीनों के लिए थे साम्राज्य के विस्तार के लिए थे। लेकिन इस पूरी दुनिया में ऐसी भी जगहें हैं जिन पर किसी देश का अधिकार नहीं है।

नई दिल्लीMay 10, 2024 / 03:13 pm

Jyoti Sharma

बीर-तवील: दुनिया की वो जगहें, जहां किसी भी देश का नहीं है राज

बीर-तवील: दुनिया की वो जगहें, जहां किसी भी देश का नहीं है राज

अक्सर आप सुनते होंगे कि दुनिया के किसी हिस्से के लिए कोई देश लड़ रहा है, किन्हीं देशों में युद्ध रहा है। यहां तक कि जमीन के लिए तो दुनिया के कई देशों में आए दिन विवाद होते रहते हैं। चाहे वो भारत हो, पाकिस्तान हो, चीन, नेपाल, रूस-यूक्रेन, गाज़ा या कोई और देश इतिहास से लेकर अब तक जितनी भी बड़े युद्ध लड़े गए हैं, ज्यादातर वो जमीनों के लिए थे साम्राज्य के विस्तार के लिए थे। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस पूरी दुनिया में ऐसी भी जगहें हैं जिन पर किसी देश का अधिकार नहीं है ना ही इन्हें कोई देश लेना चाहता है। जी हां, ये बिल्कुल सच है। तो कौन सी हैं ये जगहें और क्यों कोई देश इन्हें लेना नहीं चाहता, ये आपको बताते हैं। 

बीर तवील (Bir Tawil)

अब हम आपको वो जगह बता रहे हैं जहां ना कोई संधि है, ना कोई शासक है। ये जगह सिर्फ वीरान है और इस जगह का नाम है बीर तवील। ये जगह मिस्र और सूडान के बीच मौजूद है। इसका क्षेत्रफल 2060 वर्ग किलोमीटर है। ये जगह पूरी तरह शुष्क है। यहां दूर-दूर तक कोई पेड़-पौधे हैं, ना कोई वनस्पति है, यहां पानी की एक बूंद के लिए भी बहुत मशक्कत करनी पड़ती है। जिसके बाद भी वो बूंद नसीब नहीं होती। यही वजह है कि इस जगह को कोई देश लेना नहीं चाहता। क्योंकि किसी देश में ये जगह शामिल होती है तो वहां का संचालन करने के लिए कई मूलभूत सुविधाएं चाहिए जो वहां पर उपलब्ध नहीं कराई जा सकती। 
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस जगह पर भले ही वनस्पति और पानी नहीं है लेकिन यहां पर खनिज का भंडार है। इसी बात को सुनकर साल 2017 में एक भारतीय शख्स इस जगह को खरीदने आ गया था। यहां तक कि उसने खुद को यहां का मालिक घोषित कर दिया था। हालांकि उनकी ये इच्छा एक सपना ही रह गई। वो कभी आधिकारिक तौर पर बीर तवील के मालिक नहीं बन पाए। 

अंटार्कटिका (Antarctica)

वैसे तो धरती के दक्षिणी छोर पर बसा अंटार्कटिका (Antarctica) स्वतंत्र माना जाता है। यहां किसी भी देश का कब्जा नहीं है। यहां पर कोई भी आ जा सकता है। कोई कुछ भी कर सकता है। अंटार्कटिका कोई देश नहीं है ना ही किसी देश का हिस्सा है ये बस धरती का एक टुकड़ा है, जहां का मौसम और जलवायु झेलने की ताकत किसी में नहीं है इसलिए ये हिस्सा वीरान है। हालांकि कई देश अंटार्कटिका के हिस्से को लेना चाहते हैं। 
1 दिसंबर 1959 को पहली बार अंटार्कटिका संधि हुई थी। अंटार्कटिका को शांति और विज्ञान के लिए समर्पित एक महाद्वीप के रूप में तब नामित किया गया था। इस संधि में 54 राष्ट्रों ने माना है। लेकिन अंटार्कटिका संधि आधारिकत जगह इसलिए यहां के नियम-कानून और यहां का संचालन इस देशों के जरिए होता है। 

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