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अयोध्या विवादः अंसारी बिना अधूरी रह गई ‘सुलह’, विवादित ढांचे की लड़ाई लड़ी लेकिन राम के अस्तित्व को नहीं नकारा

अंसारी हमेशा से उदार रहे हैं वे हमेशा से सुलह का रास्ता चाहते थे। वे ऐसे फार्मुला चाहते थे कि दोनों समुदाय को ठेस न पहुंचे। उन्होंने विवादित स्थल मामले में केस लड़ा, लेकिन कभी भगवान राम के अस्तित्व को नहीं नकारा।

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Abhishek Pareek

Dec 06, 2016

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया था। इस घटना को 24 साल हो चुके हैं। इस दिन प्रतीकात्मक रूप से अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इस बार ऐसा मौका आया है, जब विवादित मामले के मुख्य मुद्दई हाशिम अंसारी के बिना लोग इस दिन को याद करेंगे।
अंसारी हमेशा से उदार रहे हैं वे हमेशा से सुलह का रास्ता चाहते थे। वे ऐसे फार्मुला चाहते थे कि दोनों समुदाय को ठेस न पहुंचे। उन्होंने विवादित स्थल मामले में केस लड़ा, लेकिन कभी भगवान राम के अस्तित्व को नहीं नकारा। इसी साल 20 जुलाई को उनका निधन हो गया था। इस साल भी उनके आवास पर भीड़ एकत्रित होगी, लेकिन हाशिम अंसारी नहीं होंगे।
हाशिम अंसारी ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास के साथ मिलकर सुलह समझौते के जरिए इस विवाद के हल के लिए कई वर्षों तक प्रयास किया, लेकिन कुछ सियासी लोगों के दखल के कारण उनकी और महंत ज्ञानदास की पूरी योजना जमीन पर नहीं उतर सकी ।


रामलला के अस्तित्व को नहीं नकारा

हाशिम अंसारी ने भले ही ताजिंदगी विवादित ढांचे के हक की लड़ाई लड़ी, लेकिन हाशिम अंसारी ने कभी भी अयोध्या में भगवान श्री राम के अस्तित्व को नहीं नकारा और ना ही कभी भगवान राम के खिलाफ एक शब्द बोला। अपनी जिंदगी के आखिरी महीनों में हाशिम अंसारी ने तो यहां तक कह दिया था कि अब वह विवादित स्थल का मुकदमा भी नहीं लड़ेंगे और वह रामलला को आजाद देखना चाहते हैं, क्योंकि रामलला को जेल खाने में कैद कर सियासत के लोग अपनी रोटियां सेंक रहे हैं।




अच्छी छवि थी
- उनकी लोगों में अच्छी छवि थी इसी वजह से उनके जनाजे में हर वर्ग शामिल हुआ था। आज उनकी कमी जरूर लोगों को खलेगी ।
बालकृष्ण वैश्य, स्थानीय व्यापारी।

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