आमतौर पर कहा जाता है कि लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई। हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन ने लोगों को ऐसे जख्म दे दिए हैं जिन्हें वक्त का मरहम शायद ही भर पाए। दस दिन के आंदोलन में हरित प्रदेश हरियाणा दस वर्ष पीछे चला गया है। आंदोलनकारियों के उपद्रव का शिकार हुए हजारों लोगों के समक्ष रोजी-रोटी और परिवार को पालने का संकट खड़ा हो गया है।
इस आंदोलन में अपना कारोबार पूरी तरह से गंवा चुके लोगों का हाल पूछने वाला कोई नहीं है। कोई नेता दिल्ली में राजनीति कर रहा है तो कोई चंडीगढ़ में। एक बिरादरी आरक्षण की मांग पर अड़ी है तो 35 बिरादरी मुख्यमंत्री के समर्थन में खड़ी हैं लेकिन सजा उन्होंने भुगती है जो न तो आरक्षण मांग रहे थे और न ही किसी दल की राजनीति का हिस्सा थे।
रोहतक के बजरंग भवन रेलवे फाटक के निकट कई वर्षों से ढाबा चलाकर अपनी बेटियों को पालने वाली विधवा महिला रमा रानी का इस आंदोलन में कुछ नहीं बचा है। बीते शुक्रवार को उपद्रवियों ने उनके ढाबे को आग के हवाले कर दिया। रमा रानी आजतक यह नहीं समझ पाई है कि उसे किस बात की सजा मिली है। घटना के समय रमा ने पुलिस, फायर ब्रिगेड समेत कई जगह संपर्क किया लेकिन कोई मदद के लिए नहीं आया। विधवा महिला और उसकी बेटियों की आजीविका का एकमात्र सहारा था यह ढाबा। घटना को तीन दिन बीत चुके हैं लेकिन आजतक कोई भी उसकी पीड़ा जानने के लिए नहीं आया है।
कमोबेश ऐसी ही स्थिति बलवीर सिंह की है। बलवीर विकलांग है। वह मोबाइल फोन की मरम्मत आदि करके अपना परिवार पाल रहा था। दंगाईयों ने दुकान में रखा सारा सामान लूट लिया और दुकान को आग के हवाले कर दिया। इस घटना के बाद बलवीर के परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। इस समय उसके पास कोई काम नहीं है।
बलवीर जैसी स्थिति मुकेश कुमारी नामक महिला की भी है। मुकेश चाय की दुकान चलाती थी। दंगाईयों ने जब हमला किया उस समय वह अपनी दुकान में खाना खा रही थी। एक ही पल में सब कुछ तबाह हो गया और हाथ में लिया निवाला भी मुंह तक नहीं पहुंच पाया। मुकेश कुमारी की परिवार इसी दुकान से चलता था। उन्होंने बताया कि घटना के चार दिन बाद भी उनकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। कर्फ्यू के कारण घर में खाने के लाले पड़ गए हैं। रोहतक शहर में मुकेश कुमारी जैसे हजारों लोग हैं जिन्हें इस आंदोलन ने जख्म तो दिए लेकिन उनके जख्मों पर मरहम लगाने के लिए कोई आगे नहीं आया।