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अवमानना मामला: एक मंच पर राहुल, स्वामी, केजरीवाल

 आपराधिक अवमाना से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीएस) के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता के मुद्दे पर राजनीतिक दृष्टि से अलग-अलग विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनेता मंगलवार को सुप्रीमकोर्ट में समवेत स्वर में बोलते नजर आए।

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vijay morya

Jul 15, 2015

आपराधिक अवमाना से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीएस) के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता के मुद्दे पर राजनीतिक दृष्टि से अलग-अलग विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनेता मंगलवार को सुप्रीमकोर्ट में समवेत स्वर में बोलते नजर आए।

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, भारतीय जनता पार्टी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीमकोर्ट से अनुरोध किया कि राजनीतिक भाषणों, टिप्पणियों और बहस-मुबाहिसों को आईपीसी के विवादित प्रावधानों के दायरे में नहीं लाया जाना चाहिए।

इन सभी ने न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायाधीश प्रफुल्ल चंद पंत की खंडपीठ के समक्ष दलील दी कि आईपीसी की धारा 499 और 500 में आपराधिक अवमानना से संबंधित प्रावधान संविधान में प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है। ये सभी अपने-अपने खिलाफ दर्ज कराए गए आपराधिक अवमानना के मामलों में संबंधित प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी है।

खंडपीठ स्वामी, गांधी एवं केजरीवाल सहित विभिन्न याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं की सुनवाई संयुक्त रूप से कर रही है। स्वामी ने दलील दी कि 19वीं सदी में बनाए गए ये कानून आजाद भारत में अतार्किक और एकपक्षीय बन चुके हैं और इनकी संवैधानिक वैधता को जांचे बगैर जारी रखा गया है। उन्होंने कहा कि राजनेताओं के खिलाफ ये प्रावधान राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से इस्तेमाल किए जाते हैं।

उन्होंने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता द्वारा उनके खिलाफ दायर मुकदमे का हवाला भी दिया। यह बहुत ही रोचक मामला है कि स्वामी के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने जहां मुकदमा दर्ज किए हैं, वहीं भाजपा नेता नितिन गडकरी और कांग्रेस के पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल के पुत्र अमित सिब्बल ने केजरीवाल को अदालत में घसीट रखा है।

कांग्रेस उपाध्यक्ष ने मार्च 2014 में एक रैली के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को महात्मा गांधी का हत्यारा करार दिया था, जिसके कारण उनके खिलाफ अवमानना का मामला दायर किया गया था। इस बीच केंद्र सरकार ने आईपीसी के इन प्रावधानों को बरकरार रखने की वकालत की है।