
अहमदाबाद. राज्य की विभिन्न अदालतों में सिविल जज के रूप में कार्यरत 70 से ज्यादा जजों ने न्याय के लिए उच्च न्यायालय में गुहार लगाई है। इन जजों की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि जब से उन्हें तदर्थ (एडहॉक) आधार पर सिविल जज के रूप में नियुक्त किया गया है तब से नियमित होने तक उनके सेवाकाल को लगातार (कन्टीन्यूएशन) सेवा के रूप में माना जाए। लगातार सेवा नहीं माने जाने के कारण उन्हें वरिष्ठता, अवकाश और वेतनमान सहित अन्य लाभों में अन्याय होता है। इस मुद्दे पर दायर याचिका पर सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल व राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है।
राहुल अग्रवाल सहित वर्ष 2012 व 2013 बैच के 74 सिविल जजों की ओ्रर से दायर याचिका में कहा गया है कि एडहॉक के रूप में दी गई आरंभिक सेवा को नियमित रूप की सेवा के साथ जोडक़र देखी जाए। दो वर्ष के प्रोबेशन अवधि को एडहॉक रूप में मानते हुए नियमित बताया जाए। साथ ही एडहॉक रूप में आरंभिक नियुक्ति के बाद प्रशिक्षण की अवधि को गिनते हुए उनकी वरिष्ठता मानी जाए। इसलिए उनकी वरिष्ठता सूची नियमित की गई तारीख की बजाय एडहॉक जज के रूप में आरंभिक नियुक्ति से मानी जाए।
मामले के अनुसार उच्च न्यायालय की ओर से राज्य में सिविल जजों की भर्ती के लिए जुलाई 2011 में विज्ञापन जारी किया गया था। इसमें कुल 506 सीटों के लिए आवेदन मंगाए गए थे। इनमें 137 नियमित व 36९ एडहॉक स्तर के सिविल जज के कैडर की भर्ती शामिल थी। इसके बाद अप्रेल 2012 में दूसरा विज्ञापन जारी कर 33 नियमित और 287 एडहॉक सहित कुल 320 सिविल जजों के पदों की भर्ती के लिए आवेदन मंगाए गए थे। याचिकाकर्ताओं ने ऑनलाइन आवेदन किया गया था। इसके बाद प्राथमिक, मुख्य व मौखिक इंटरव्यू भी आयोजित किया गया। याचिकाकर्ता इन सभी चरणों को उत्तीर्ण करते हुए एडहॉक आधार पर सिविल जज की सेवा से जुड़े।
इसके बाद जनवरी 2015 में 58 सिविल जजों को नियमित सेवा में लिया गया। इसके बाद जुलाई 2015 में सभी को नियमित किए जाने का निर्णय लिया गया। हालांकि वरिष्ठता, वेतनमान व अवकाश के मुद्दे पर उनकी ओर से एडहॉक आधार पर दी गई सेवा को ध्यान में नहीं लिया गया।
इसलिए अप्रेल 2017 में इन याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय के प्रशासनिक विभाग के समक्ष गुहार लगाई गई। इसके बाद हाईकोर्ट ने फरवरी 2018 में सिविल जजों की एक सूची जारी की। इस सूची में जिन जजों को सिनियर सिविल जज के रूप में प्रमोशन किया गया था उन्हें शामिल किया गया था, लेकिन इसमें भी एडहॉक जजों के प्रमोशन को ध्यान में नहीं लिया गया।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार उनकी सेवा गुजरात राज्य न्यायिक सेवा नियम, 2005 के तहत आती है जिसमें उनकी सेवा की व्याख्या में एडहॉक और नियमित के बीच किसी प्रकार का भेदभाव रखने की बात नहीं कही गई है।
Published on:
13 Apr 2018 11:40 pm
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