अजमेर. ‘बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से होयÓ कबीरदास की इन पंक्तियों का भाव आज कृषि के क्षेत्र में चरितार्थ हो रहा है। जूली फ्लोरा (बिलायती बबूल) जो कभी फसलों के लिए लाइफ फैंसी के रूप में काम लिया गया मगर आज यह फसलों को चौपट कर रहा है। जूली फ्लोरा की छाया में इतना विष है कि यह फसलों की पैदावार कम ही नहीं करता बल्कि पौधे को अंकुरित ही नहीं होने देता है। जूली फ्लोरा से संभाग के अजमेर, नागौर, टोंक, भीलवाड़ा ही नहीं प्रदेशभर में कृषक तौबा करने लगे हैं।
प्रदेशभर में खेतों के चारों ओर मेड़ (बाउंड्री) पर जूली फ्लोरा को अंकुरित किया गया। फसलों को जानवरों से बचाने के लिए यह लाइफ फैंसी अब किसानों के लिए सिरदर्द बन चुकी है। नागौर में जहां राज्यवृक्ष खेजड़ी फसलों को सकारात्मक उर्जा उपलब्ध करवा रही है वहीं जूली फ्लोरा नकारात्मक उर्जा से फसलों को खाक कर रही है।
ऐसे समझें…
बिलायती बबूल की छाया में फसल (पौधा) प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कर भोजन नहीं बना पाता है। वातावरण का तापमान भी बढ़ा देता है। जड़ें ज्यादा गहरी नहीं होने से जमीन का पानी सोंख लेती है और जमीन की उर्वरकता नष्ट कर देती है। जबकि राज्यवृक्ष खेजड़ी पौधों का सकारात्मक उर्जा प्रदान करती है।
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जैवविविधता के लिए खतरा
-देशी पेड़-पौधों की 500 प्रजातियों को नष्ट कर चुका है।
-जूली फ्लोरा की पत्तियां छोटी होने से कार्बन कम सोखता है।
-बिलायती बबूल से पक्षियों की प्रजातियां भी कम हुई।
क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक
छाया, पत्तियां एवं जड़ें छोड़ रही विषखेतों की मेड़ पर लाइफ फैंसी के रूप में जूली फ्लोरा फसलों के लिए सबसे अधिक खतरा है। जूली फ्लोरा की छाया के नीचे रबी, खरीफ की सभी फसलें-गेहूं, जौ, मक्का, मूंग, चवला उत्पादन घटा रही है। इसके पत्ते सूखकर जहां गिरते हैं वहां फसलों का अंकुरण नहीं होता है, जूली फ्लोरा की जड़ें ऐसा रस स्त्राव करती हैं जो जमीन की उर्वरक क्षमता खत्म कर रही है। जूली फ्लोरा किसानों के लिए अभिशाप है।
डॉ. दिनेश अरोड़ा, कृषि वैज्ञानिक