
- नगर निगम प्रतिदिन कमा सकता है 60 हजार रुपए, यह प्लास्टिक मजदूर उठाकर ले जा रहे
- गीला व सूखा कचरा सेग्रिगेशन के साथ ही प्लास्टिक कचरा भी अलग होना जरूरी
Alwar: शहर से हर दिन निकलने वाले 250 टन कचरे से करीब 3 टन प्लास्टिक वेस्ट निकल रहा है। यह वेस्ट नगर निगम नहीं, बल्कि मजदूर इकट्ठा करके ले जा रहे हैं, जबकि निगम ही इस कचरे को अलग करके प्रतिदिन 60 हजार रुपए और माह में 18 लाख रुपए कमा सकता है। प्लास्टिक का सेग्रिगेशन व निस्तारण नहीं होने के कारण यह पर्यावरण के लिए खतरा है। एक्सपर्ट की राय है कि नगर निगम अलवर के भविष्य को गर्त में डाल सकता है। कचरे में यह प्लास्टिक यूं ही जाता रहा तो भविष्य में प्रदूषण की मात्रा बढ़ेगी।
ये हैं प्लास्टिक से होने वाले नुकसान
- प्लास्टिक को नष्ट होने में सैकड़ों या हजारों साल लग जाते हैं, जिससे यह पर्यावरण में जमा हो जाता है और कचरे का ढेर बन जाता है।
- प्लास्टिक के टूटने से हानिकारक रसायन निकलते हैं, जो मिट्टी और पानी को दूषित करते हैं। यह समुद्री जीवों के लिए भी खतरनाक होता है।
- प्लास्टिक के उत्पादन और जलाने से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे जलवायु परिवर्तन होता है।
- जानवर गलती से प्लास्टिक खा लेते हैं, जिससे उनकी जान चली जाती है। पॉलीथिन भी उसका उदाहरण है।
- प्लास्टिक के कारण समुद्र और मिट्टी का अम्लीकरण होता है, जो पौधों और जानवरों के लिए हानिकारक हो सकता है।
- समुद्र में प्लास्टिक के कचरे के कारण समुद्री जीव जैसे कि कछुए, व्हेल मछली आदि मर जाते हैं।
सेग्रिग्रेशन की व्यवस्था नहीं
इंदौर सहित कई शहरों में गीला व सूखा कचरा अलग लिया जा रहा है। मगर अलवर ही नहीं। राजस्थान के ज्यादातर निकायों में अभी तक सेग्रिगेशन की कोई व्यवस्था नहीं है। निगम ने कई बार अलवर में ड्राइव चलाकर लोगों को गीले व सूखे कचरे के लिए समझाया भी है, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है। हालांक कुछ लोगों ने इसे अपनाया है।
इंदौर से लिया जा सकता है ज्ञान
इंदौर में सफाई को लेकर चल रहे काम से अलवर सीख ले सकता है। यहां सूखे कचरे में शामिल अनुपयोगी प्लास्टिक, कपड़ा, पेपर आदि करीब 120 से 150 टन सामग्री प्रतिदिन सीमेंट फैक्ट्रियों को भेजी जाती है। साथ ही रोड निर्माण में भी इसका प्रयोग किया जा रहा है।
कचरे में यह प्रतिबंधित चीजें
राजस्थान में सिंगल यूज प्लास्टिक को पूरी तक बैन किया हुआ है, लेकिन आज भी धड़ल्ले से इसका प्रयोग हो रहा है। बैन हुई वस्तुओं में थर्माकोल से बनी प्लेट, कप, गिलास, सिगरेट पैकेट की फिल्म, प्लास्टिक के झंडे, कटलरी जैसे कांटे, चम्मच, चाकू, पुआल, ट्रे, मिठाई के बक्सों पर लपेटी जाने वाली फिल्म, निमंत्रण कार्ड, गुब्बारे की छड़ें और आइसक्रीम पर लगने वाली स्टिक, क्रीम, कैंडी स्टिक और 100 माइक्रोन से कम के बैनर शामिल हैं। ये सभी कचरे में रोजाना आती है। इसके अलावा प्लास्टिक की बोतलें भी सर्वाधिक हैं।
ऐसे फेंका जा रहा सिंगल यूज प्लास्टिक
शहर के काली मोरी से लेकर शांतिकुंज मार्ग पर 50 किलो से ज्यादा सिंगल यूज प्लास्टिक फेंका हुआ है, जिसमें प्लास्टिक की प्ले, चम्मच, ढोने से लेकर ग्लास आदि शामिल हैं। यह क्यों फेंके गए, यह तो पता नहीं चल पाया, लेकिन मजदूर लोग उठाकर ले जा रहे हैं।
प्लास्टिक पर्यावरण के लिए खतरा
शहर के बुद्ध विहार निवासी विनोद कुमार हरियाणा के एक विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग से रिटायर हुए है। उनका कहना है कि कचरा जलाने के केस हर शहर में आ रहे हैं। अलवर में भी अग्यारा िस्थत कचरा निस्तारण प्लांट पर कचरा आए दिन चलता है। उस कचरे में प्लास्टिक भी जा रहा है। प्रतिदिन 3 टन प्लास्टिक यदि कचरे में जाता है और उसे जलाया जाता है तो उसके आसपास का 4 किमी का एरिया प्रदूषण की गंभीर चपेट में आता है। प्लास्टिक जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें भी निकलती हैं, जो जलवायु परिवर्तन में योगदान करती हैं। ऐसे में प्लास्टिक कचरा अलग किया जाना चाहिए। यह पर्यावरण के लिए जरूरी है। मनुष्य ही नहीं, जलीय जीव, जानवरों के लिए भी जरूरी है।
इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट सिस्टम पर तेजी से काम चल रहा है। जल्द ही प्लास्टिक कचरा अलग किया जाएगा और इसका री-यूज भी होगा।
- जीतेंद्र सिंह नरूका, आयुक्त नगर निगम
Published on:
05 Jun 2025 08:00 pm
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