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अलवर

यूआईटी 25 साल में यहां नहीं लगा पाई एक भी ईंट

नगर विकास न्यास (यूआईटी) ने 25 साल पहले नया अलवर बसाने का जो सपना जनता को दिखाया था, वह वहीं का वहीं है। यूआईटी ने साकेत, रोहिणी कॉलोनी बसाने के लिए 1200 बीघा जमीन खरीदी थी लेकिन इसमें एक ईंट तक नहीं लगाई गई। चाहरदीवारी तक नहीं की गई। यही कारण रहा कि 40 बीघा एरिया में अतिक्रमण हो गया जो कुछ समय पहले हटाया गया। इस जमीन पर फिर से बिल्डरों की नजर है लेकिन यूआईटी कॉलोनी बसाने के लिए आगे कदम नहीं बढ़ा पा रही है।

अलवरFeb 03, 2024 / 11:31 am

susheel kumar

यूआईटी 25 साल में यहां नहीं लगा पाई एक भी ईंट

यूआईटी 25 साल में यहां नहीं लगा पाई एक भी ईंट

नया अलवर बसाने के लिए 1200 बीघा जमीन घेरकर बैठी यूआईटी…25 साल में एक ईंट तक नहीं लगाई

– वर्ष 1998 में देसूला, बहाला, दिवाकरी, एमआईए क्षेत्र में खरीदी गई थी जमीन, दो बार किया अवार्ड
– इस जमीन पर बिल्डरों की नजर, 40 बीघा में कुछ समय पहले यूआईटी ने खुद हटाया था कब्जा
– जमीन मालिकों को रुपए के बदले प्लॉट देने का सरकार को भेजा गया था प्रस्ताव, अब तक नहीं हुआ मंजूर
नगर विकास न्यास (यूआईटी) ने 25 साल पहले नया अलवर बसाने का जो सपना जनता को दिखाया था, वह वहीं का वहीं है। यूआईटी ने साकेत, रोहिणी कॉलोनी बसाने के लिए 1200 बीघा जमीन खरीदी थी लेकिन इसमें एक ईंट तक नहीं लगाई गई। चाहरदीवारी तक नहीं की गई। यही कारण रहा कि 40 बीघा एरिया में अतिक्रमण हो गया जो कुछ समय पहले हटाया गया। इस जमीन पर फिर से बिल्डरों की नजर है लेकिन यूआईटी कॉलोनी बसाने के लिए आगे कदम नहीं बढ़ा पा रही है।
इस तरह यूआईटी ने ली जमीन, किया अवार्ड

यूआईटी ने वर्ष 1998 में साकेत, रोहिणी बसाने के लिए देसूला, बहाला, दिवाकरी, कैमाला गांव के अलावा एमआईए के पास का एरिया अवाप्त करने का निर्णय लिया। इन क्षेत्रों की करीब 1200 बीघा जमीन ली गई। इसके लिए प्रशासन ने अवार्ड भी घोषित कर दिया। जमीन पर कब्जा लेना था लेकिन वर्ष 2002 में यूआईटी ने जमीन लेने से मना कर दिया। कारण बताया कि यूआईटी के पास पैसे नहीं हैं। यूआईटी ने 3 साल तक इस जमीन को अपने से दूर रखा लेकिन वर्ष 2005 में फिर इस जमीन पर नजर गई। जमीन लेने की इच्छा जाहिर की। अवार्ड फिर किया गया। इस जमीन पर पूरी तरह यूआईटी कब्जा आज तक नहीं कर पाई। कुछ किसान हाईकोर्ट इसलिए पहुंच गए थे कि यूआईटी बार-बार निर्णय बदल रही थी।
शुरू हो जाता काम तो शहर की बदल जाती सूरत
25 साल बीत गए लेकिन इस 1200 हेक्टेयर का विकास नहीं हुआ। एक्सपर्ट धर्मेंद्र शर्मा कहते हैं कि यदि ये एरिया उस समय ले लिया होता तो आज नया अलवर बस जाता। नया लुक मिलता। घनी आबादी होती। वार्ड अधिक बनते। अलवर अब तक संभाग भी बन गया होता। अब तक अलवर शहर निगम की जनसंख्या का ही मानक पूरा नहीं कर पा रहा है। सूत्र कहते हैं कि कुछ बिल्डरों की नजर इस पूरी जमीन पर है। यूआईटी आगे कदम नहीं बढ़ा रही है। हालांकि विधानसभा चुनाव से पहले यूआईटी ने सरकार को प्रस्ताव भेजा था कि जमीन मालिकों को रुपए के बदले उन्हें प्लॉट दे दिए जाएं। इसकी अनुमति छह माह में सरकार नहीं दे पाई। अब नई सरकार से उम्मीद की जा रही है।
10 हजार से ज्यादा बनने थे आवास

मालूम हो कि इस कॉलोनी में दस हजार से अधिक आवास बनने थे, जो अपने में प्रदेश की सबसे बड़ी कॉलोनी होती। आधुनिक सुविधाओं से ये लबरेज होनी थी। आईटी पार्क से लेकर विदेशी कंपनियां के दफ्तर भी इस कॉलोनी में खोले जाने थे। इस जमीन के दूसरे हिस्से में मॉल आदि बनाने की भी योजना थी जो अब हवा में है।

ये मामला मेरे संज्ञान में नहीं है। इसके बारे में पता करेंगे। जहां दिक्कतें आ रही हैं उनका समाधान करते हुए आगे बढ़ेंगे।
— प्रतिक जुईकर, सचिव, यूआईटी

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