सरगुजा जिले के एक गांव में 18 जुलाई 2012 को 10 वर्षीय बालिका सुबह घर से स्कूल जाने निकली थी। रास्ते में जंगल के पास पहुंचने पर 45 वर्षीय एक ग्रामीण ने पहचान का फायदा उठाते हुए उसे रास्ते में रुकवाया और बात करने लगा। कुछ देर बाद आरोपी ने उससे कहा कि वह उसे किलकिला नामक चिडिय़ा दिखाएगा। मासूम बालिका आरोपी की मंशा को समझ नहीं पाई और उसके झांसे में आ गई।
थाने में दर्ज कराई रिपोर्ट
बालिका द्वारा जानकारी दिए जाने के बाद परिजनों के पैरों तले से जममीन खिसक गई। वे तत्काल थाने पहुंचे और आरोपी के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस जब आरोपी की खोज में निकली तो वह फरार हो चुका था। पुलिस ने उसके कई ठिकानों पर दबिश दी लेकिन उसे पकड़ा नहीं जा सका था। घटना को करीब साढ़े 7 वर्ष बीत चुके थे। इस बीच वर्ष 2020 के फरवरी माह में आरोपी ने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया था।
कोर्ट ने सुनाई आजीवन कारावास की सजा
आरोपी द्वारा आत्मसमर्पण करने के बाद कोर्ट ने उसे जेल भेज दिया था। प्रकरण की सुनवाई पूरी होने के बाद पूजा जायसवाल अपर सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट ने धारा 376(2) झ के तहत आरोपी को आजीवन कारावास (Lifetime Imprisonment) की सजा सुनाई है।
हवस में अंधे लोग मासूम बेटियों से भी हैवानियत करने से पीछे नहीं हटते। ऐसा कृत्य करते समय उनके मन में कानून का डर भी नहीं रहता। यही कारण है कि आए दिन बालिकाओं के साथ ऐसी वारदातें हो रही हैं। पीडि़ता व परिजनों की जुर्म के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत तथा ऐसे मामलों में पुलिस की तत्काल की जाने वाली कार्रवाई से आरोपी पकड़े जाते हैं और कोर्ट उन्हें आरोप की पकृति के हिसाब से सजा सुनाती है।