कभी शहर के नामचीन कारोबारी और रियल एस्टेट जगत में पहचान रखने वाले एलायंस बिल्डर परिवार के लिए 27 अक्टूबर की सुबह किसी दिवाली से कम नहीं थी। तीन साल बाद जब प्रशासन ने हाईकोर्ट के आदेश पर उनके जनकपुरी और मॉडल टाउन स्थित घरों व प्रतिष्ठानों की सील खोली, तो लोहे की जंजीरों के साथ ही परिवार के दिलों से भी एक बोझ उतर गया।
बरेली। कभी शहर के नामचीन कारोबारी और रियल एस्टेट जगत में पहचान रखने वाले एलायंस बिल्डर परिवार के लिए 27 अक्टूबर की सुबह किसी दिवाली से कम नहीं थी। तीन साल बाद जब प्रशासन ने हाईकोर्ट के आदेश पर उनके जनकपुरी और मॉडल टाउन स्थित घरों व प्रतिष्ठानों की सील खोली, तो लोहे की जंजीरों के साथ ही परिवार के दिलों से भी एक बोझ उतर गया।
इन तीन वर्षों में अरविंदर सिंह और रमनदीप सिंह का परिवार बरेली में ही पराए घरों में किरायेदार बनकर रह रहा था। वे अपने ही आशियाने को हर दिन दूर से देखते, पर अंदर कदम नहीं रख पाते। दीवारें पास थीं, पर घर उनके नहीं थे। बरामदे की मिट्टी, दरवाज़ों की खामोशी, बंद कमरों की गंध, सब उनकी यादों में कैद थी। हर त्योहार, हर शादी और हर सुबह-शाम का एक ही सवाल कब लौटेंगे अपने घर?
हाईकोर्ट से 3 सितंबर को जब गैंगस्टर एक्ट की कार्यवाही खत्म हुई, तो परिवार को उम्मीद की किरण दिखी। पर आदेश लागू न होने से वे फिर मायूस हो गए। इसके बाद उन्होंने दूसरी बार अदालत का दरवाजा खटखटाया, और आखिरकार डीएम आविनाश सिंह ने 24 अक्टूबर को आदेश जारी कर 27 अक्टूबर को सील खुलवाने की प्रक्रिया शुरू कराई।
जैसे ही अधिकारियों ने मुख्य दरवाज़े की सील तोड़ी, परिवार के लोग फूट-फूटकर रो पड़े। अरविंदर सिंह ने आंखों में नमी लिए कहा कि ये सिर्फ ईंट और दीवार नहीं, हमारी ज़िंदगी का वो हिस्सा है जो तीन साल से कैद था… आज लगा जैसे हमारा घर नहीं, हमारी आत्मा आज़ाद हुई है। पड़ोसी भी इस दृश्य को देखकर भावुक हो उठे। जिनके अपने घर सील हुए थे, उनकी आंखों से भी आंसू निकल पड़े। यह सिर्फ कानूनी जीत नहीं, बल्कि इंसान और उसके घर के बीच मोहब्बत की पुनःस्थापना थी।