- चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ जिलों से होकर निकल रही अरावली पहाडि़यां
अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा और दूरगामी प्रभाव वाला फैसला सुनाया है। कोर्ट ने सौ मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों में खनन पर पूर्ण रोक लगा दी है, जबकि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में नियंत्रित और वैज्ञानिक तरीके से खनन की अनुमति दी है। हालांकि फिलहाल नए खनन पट्टे या लीज जारी करने पर रोक लगाई है, लेकिन इस निर्णय के बाद राजस्थान में पर्यावरणविदों और विभिन्न संगठनों के विरोध के स्वर तेज हो गए हैं।
यह मामला अरावली पर्वतमाला की परिभाषा तय करने और राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली व गुजरात में इसके संरक्षण से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट में यह प्रकरण मेहता बनाम भारत सरकार और टीएन गोडावरमन मामलों के तहत लंबे समय से विचाराधीन है। 10 जनवरी 2024 को कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि अलग-अलग राज्यों में अरावली की अलग परिभाषा होने से खनन पर प्रभावी नियंत्रण संभव नहीं हो पा रहा है। इसी के चलते कोर्ट ने केंद्रीय सशक्त समिति (सीईसी) को विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे।
सीईसी ने 7 मार्च 2024 को अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए कई अहम सुझाव दिए थे। इनमें पूरे अरावली क्षेत्र की छह माह में मैपिंग, एफएसआई से सर्वे, नेशनल कैम्पा फंड के उपयोग और राजस्थान के अरावली जिलों में व्यापक पर्यावरणीय अध्ययन शामिल हैं। रिपोर्ट में अध्ययन अवधि के दौरान नई खनन लीज पर रोक लगाने और वन्यजीव अभ्यारण्य, टाइगर रिजर्व, ईएसजेड, रामसर साइट, जल स्रोत, डार्क जोन तथा राजस्थान–हरियाणा सीमा के 10 किलोमीटर दायरे में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध की सिफारिश की थी।
अंतरिम आदेश में कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि जब तक सभी राज्य और पर्यावरण मंत्रालय मिलकर अरावली की साझा परिभाषा तय नहीं करते, तब तक कोई नई खनन लीज अंतिम रूप से स्वीकृत नहीं होगी। हालांकि, कानूनी रूप से संचालित खदानें बंद नहीं की जाएंगी, क्योंकि पूर्ण प्रतिबंध से अवैध खनन बढ़ने की आशंका जताई गई थी।
राजस्थान में अरावली पर्वतमाला कई जिलों में फैली हुई है। जिनमें प्रमुख हैं सिरोही, उदयपुर, राजसमंद, अजमेर, जयपुर, दौसा, अलवर, पाली, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, सीकर और झुंझुनू। यह उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा में फैली है और राज्य के लगभग 10 प्रतिशत हिस्से को कवर करती है, जिसमें गुरुशिखर (सिरोही) इसकी सबसे ऊंची चोटी है।
पर्यावरणविदों का कहना है कि इस परिभाषा के बाद 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियां खनन के लिए खुल जाएंगी। इससे अरावली की प्राकृतिक निरंतरता टूटेगी और पहाड़ नष्ट हो जाएंगे। वहीं सरकार का तर्क है कि अरावली का बड़ा क्षेत्र संरक्षण के दायरे में आएगा और अवैध खनन पर प्रभावी रोक लग सकेगी। हालांकि, राजस्थान में कई पर्यावरण संगठन अब खुलकर विरोध में उतर आए हैं और 100 मीटर से नीचे की पहाड़ियों में खनन को भी पूरी तरह प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे हैं।