- रुई धुनाई का परंपरागत व्यवसाय खत्म होने की कगार पर, ब्लैंकेट ने ली रजाइयों की जगह
कभी सर्दियों की पहचान रही रुई से भरी भारी रजाइयों का चलन अब तेजी से खत्म होता जा रहा है। वर्षों तक सर्दी शुरू होने से पहले घर-घर में रजाई भरवाने की परंपरा रही, लेकिन आधुनिक जीवनशैली और बाजार में उपलब्ध रेडीमेड विकल्पों ने इस परंपरा को लगभग विलुप्ति की ओर धकेल दिया है। अब अधिकांश घरों में रजाइयों की जगह ब्लैंकेट और रेडीमेड कंबलों ने ले ली है। एक दशक पहले तक भीलवाड़ा शहर के सदर बाजार समेत कई इलाकों में रुई धुनाई और रजाई भरने की दर्जनों दुकानें सक्रिय रहती थीं। परिवारजन और कारीगर मिलकर दिनभर रजाइयां भरने के काम में जुटते थे। आज स्थिति यह है कि अधिकांश दुकानों पर ताले लटके हैं और रुई धुनाई का व्यवसाय लगभग समाप्ति पर पहुंच गया है। इस पेशे से जुड़े कारीगर अब दूसरे रोजगार की तलाश में भटक रहे है।
जहां पहले लोग मोटी और भारी रजाइयों को सर्दी से बचाव का सबसे भरोसेमंद साधन मानते थे, वहीं अब उपभोक्ता हल्के, आकर्षक और अधिक गर्म रखने वाले ब्लैंकेट को प्राथमिकता दे रहे हैं। खासकर युवा वर्ग और छात्रावासों व पीजी में रहने वाले लोग माइक्रोफाइबर और सिंथेटिक कंबलों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। गृहिणियों का कहना है कि हल्के कंबल बच्चों और बुजुर्गों के लिए अधिक सुविधाजनक साबित हो रहे हैं। रजाई भरने वाले दुकानदारों का कहना है कि अब रजाई भरवाने ग्राहक कभी-कभार ही आते हैं। कई कारीगरों ने मजबूरी में रेडीमेड रजाइयां और कंबल बेचना शुरू कर दिया है, ताकि आजीविका चल सके। रजाई भरवाने की परंपरा धीरे-धीरे अतीत की बात बनती जा रही है।
सर्दी के आगमन के साथ ही सामाजिक और सेवा संगठनों ने जरूरतमंदों को कंबल वितरण की तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस बार संस्थाएं हल्के लेकिन टिकाऊ कंबलों को प्राथमिकता दे रही हैं, ताकि कम लागत में अधिक लोगों तक सहायता पहुंचाई जा सके।मौसम विभाग के अनुसार दिसंबर के अंतिम सप्ताह के बाद सर्दी और बढ़ने की संभावना है। इसे देखते हुए भीलवाड़ा शहर में पुर, चित्तौड़ रोड तथा अजमेर रोड से लेकर अन्य स्थानों पर रेडीमेड कंबलों की दर्जनों अस्थायी दुकानें सजी हुई है।