International Tiger Day 2025: बाघ संरक्षण को लेकर पूर्व आइएफएस अफसर आर. श्रीनिवास मूर्ति से पत्रिका की खास बातचीत
International Tiger Day 2025: जनसहयोग से बाघ संरक्षण के आदर्श वाक्य के साथ पन्ना टाइगर रिजर्व में दुनिया की सबसे सफल बाघ पुनर्स्थापन योजना का नेतृत्व करने वाले पूर्व आइएफएस अधिकारी आर. श्रीनिवास मूर्ति ने वन विभाग के अफसरों को जनता से संवाद के महत्त्व को समझने की नसीहत दी है। पत्रिका से खास बातचीत में कहा, फील्ड डायरेक्टर से लेकर चौकीदार तक सभी को ग्रामीणों से सीधा संवाद रखने से बाघों के संरक्षण में बड़ी मदद मिलती है। ‘बाघवान’ मूर्ति से चर्चा के प्रमुख अंश...
2005 के दौरान चाइना वन्यप्राणी के अंगों का बड़ा मार्केट था। शिकार भी बड़ी समस्या थी। तब देश की सरकार ने इस अलार्मिंग हालात को समझा और अंकुश लगाया। इसके बाद से प्रदेश में बाघ अब 780 हो गए हैं। पन्ना में ही अभी करीब 100 बाघ हैं। टाइगर रिजर्वों में बाघ बढ़े हैं। इससे बाघों का पलायन स्वभाविक है। इसके आकलन के लिए सभी टाइगर रिजर्वो के फील्ड डायरेक्टर को हर साल फेज-4 की गणना कराना चाहिए। उस हिसाब से बाघ संरक्षण प्लान अपडेट करना चाहिए। बाघों के पलायन की स्थिति बनने पर लैंडस्केप के डीएफओ को पत्र लिख पूर्व से ही सूचित करना चाहिए, जिससे बाघ कॉरिडोर में उसे सुरक्षा प्रदान कर शिकार की आशंकाओं को कम किया जा सके।हालांकि मध्यप्रदेश में इसे लेकर उतनी समस्या नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय मार्केट और संगठित शिकार को भले ही कमजोर कर दिया गया हो पर स्थानीय गिरोह सक्रिय हैं। एक साल पहले महाराष्ट्र में मध्यप्रदेश का पारधी शिकारी अजय सिंह पकड़ा गया था। उसने 100 बाघों का शिकार करने की बात कबूली थी। अधिकारियों को सुनिश्चित करना होगा कि शिकार की घटनाएं नहीं हों। फील्ड डायरेक्टरों को ध्यान रखना चाहिए कि रिजर्व में कोई घटना नहीं हो।
बाघ संरक्षण में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करने के लिए ऐप और सॉफ्टवेयर विकसित करने होंगे। कैमरा ट्रैप में अवांक्षित लोगों के जंगलों में प्रवेश और उनकी गतिविधियों का पता चल जाता है। विदिशा से एक बाघ सवा साल पहले निकल गया था, जिसे तकनीकों से एक माह बाद लाया जा सका था।
बाघ संरक्षण का कार्य वैज्ञानिक सोच के साथ ही चल रहा है। इसमें स्थानीय लोगों की सहभागिता और संरक्षण बहुत जरूरी है। दरअसल, अधिकारियों ने अपने को अधिकारों के सिंहासन पर बैठा रखा है। सिंहासन पर बैठे अफसरों को जनता से सीधे संवाद को महत्त्व को समझना होगा। किसी न किसी रूप में जनता का साथ लेना होगा। बाघ संरक्षण करने, शिकार की घटनाएं रोकने जन सहयोग बेहद जरूरी है।
हर टाइगर रिजर्व में अधिकतम बाघ धारण क्षमता के बाद और पानी व शिकार की खोज में बाघों का पलायन स्वाभाविक प्रवृत्ति है। आजकल पर्यटकों में बाघों के साथ सेल्फी लेने और फोटो-वीडियो का ट्रेंड चल रहा है। इससे हम बाघों का स्वभाव बदल रहे हैं। रणथंभौर में इसी प्रकार की समस्याएं हो रही हैं। इसमें पर्यटकों को पार्क के अंदर कंट्रोलबेस में रहना चाहिए। संरक्षित वन क्षेत्र में जाने वाले पर्यटकों को इसे मजे- पिकनिक मनाने के स्थान के बजाए रिस्पांसबल टूरिज्मके रूप में देखने की जरूरत है।
-आर. श्रीनिवास मूर्ति, पूर्व आइएफएस अधिकारी