देखने में बेहद खूबसूरत और लम्बी गर्दन और पतला शरीर स्नेहिल पक्षी के रूप में छाप छोड़ता है। इस पक्षी को उथला पानी और दलदली भूमि बेहद पसंद है। अपनी लंबी, नुकीली चोंच से पानी में भोजन तलाशती, जोड़े में आसमान में उड़ते और झील में कतारबद्ध बैठी कुरजां और कर्णप्रिय कलरव देखने और सुनने से ही कई बातें कह देता है।
दिनेश कुमार स्वामी@बीकानेर. प्रदेश की खारे पानी की झीलों में शुमार लूणकरनसर झील क्षेत्र में इन दिनों कुरजां का मीठा कलरव गूंज रहा है। इंटीग्रेटेड वेटलैंड घोषित इस झील में सैकड़ों की तादाद में सारस प्रजाति की डेमोइसेल क्रेन (ग्रस विर्गो) का आगमन हो चुका है। इस पक्षी का राजस्थानी संस्कृति से गहरा नाता है। सदियों से लोक गीतों में प्रेमी-प्रेयसी कुरजां को संदेश वाहक के रूप में याद करते हैं।
करीब 320 हेक्टेयर में फैले खारे पानी की इस झील में जोड़ों में नजर आ रही कुरजां, इंसानों को जीवनभर साथ रहने और समर्पण का संदेश दे रही है। देखने में बेहद खूबसूरत और लम्बी गर्दन और पतला शरीर स्नेहिल पक्षी के रूप में छाप छोड़ता है। इस पक्षी को उथला पानी और दलदली भूमि बेहद पसंद है। अपनी लंबी, नुकीली चोंच से पानी में भोजन तलाशती, जोड़े में आसमान में उड़ते और झील में कतारबद्ध बैठी कुरजां और कर्णप्रिय कलरव देखने और सुनने से ही कई बातें कह देता है। झील के पास से निकल रहे नेशनल हाइवे से गुजरने वालों का अनयास ही ध्यान कुरजां अपनी तरफ खींच लेती है।
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर और वन विभाग के रेंजर विकास स्वामी ने बताया कि लूणकरनसर झील में इस बार बारिश अच्छी होने से पर्याप्त पानी आया है। सुरक्षित आवास और नम लवणीय भूमि कुरजां को यहां प्रवास के लिए आकर्षित करती है। क्षेत्र में खरीफ फसलों की कटाई के बाद खेतों में बिखरे बाजरा, मोठ व मूंग के दानें इसके पसंदीदा भोजन हैं। यहां की साफ आबोहवा भी कुरजां को यहां खींच लाती है।
साइबेरिया और अन्य स्थानों पर कुरजां ग्रीष्म काल में रहती है। यह इनका मूल निवास स्थान है। शीत ऋतु में अत्यधिक ठंड होने पर कुरजां करीब छह हजार किलोमीटर की उड़ान भरकर राजस्थान की तरफ आती है। हवाई दूरी भी करीब चार हजार किलोमीटर है।
सर्दियों के आगमन के साथ ही लूणकरनसर झील पर कुरजां का आवागमन हो गया है। ये पक्षी यहां 6 माह के शीतकालीन प्रवास के बाद मार्च में वतन वापसी की उड़ान भरना शुरू कर देगा। कुरजां को राजस्थान में प्रेम का प्रतीक माना जाता रहा है। एक तो इनके स्वयं का जोड़े में एक-दूसरे के प्रति समर्पण और दूसरा जन्मभर साथ रहने का स्वभाव इसकी खासियत है। इसी प्रेम के प्रतीक के कारण लोग कुरजां को संबोधित कर लोकगीतों में गुनगुनाते हैं।