पूर्वजों के नाम व इतिहास के साथ उनकी उत्तरोत्तर नामावली को संरक्षित रखने के लिए ‘रावजी की बही’ का महत्व नहीं भूले
हाइटेक जमाने में ‘रावजी की बही’ का महत्व आज भी बरकरार, गांव-गांव बांच (वाचन) रहे बही
भागीरथ ज्याणी
बज्जू. ( बीकानेर). इक्कीसवीं सदी में हर प्रकार के रिकॉर्ड को सुरक्षित रखने के लिए कप्यूटर सहित कई-तरह के गैजेट्स उपयोग में लिए जा रहे हैं। इस बीच ग्रामीण इलाकों में ‘रावजी की बही’ का महत्व आज भी बरकरार हैं। ग्रामीण क्षेत्र में लोग अपने पूर्वजों के नाम व इतिहास के साथ उनकी उत्तरोत्तर नामावली को संरक्षित रखने के लिए ‘रावजी की बही’ का महत्व नहीं भूले हैं और समय-समय पर गांवों में इन बहियों को सुनने व वाचन करने के लिए खास तरह के धार्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। इसमें सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में पाट या सूत की चारपाई पर बैठकर रावजी अपने पूर्वजों की ओर से सहेजी गई यजमानों की बही का वाचन करते हुए संबंधित परिवार की दर्जनों पीढ़ियों की वंशावली का बखान करते हैं। बही वाचन करवाने वाले परिवार की ओर से बही बांचने वाले ‘रावजी’ को नकद राशि, सोने की अंगुली के साथ ही कई उपहार भेंट करते हैं।
विवाद की स्थिति में बही बड़ा आधार
बही लेखन की परपरा प्राचीन समय से ही चली आ रही है। शताब्दियों बाद भी परिवार में हुए जन्म व मृत्यु सहित समय-समय पर होने वाले शादी-विवाह एवं अन्य बड़े आयोजनों की जानकारी राव (भाट) जाति के लोग अपनी बरसों पुरानी बहियों में दर्ज करते हैं। लोग आज भी विवाद की स्थिति एवं परिवार के वंशावली लेखन में इन बहियों को ही आधार मानते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी बही लेखन से जुड़े रहे परिवारों में आज भी शताब्दियों पुरानी बहियां सुरक्षित और संरक्षित है। कई समाज और जातियों के ’बहीभाट’ आज भी इस परपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। विभिन्न जातियों का विस्तृत विवरण डिंगल व पिंगल भाषा में इन बहियों में मिल जाता है। इन दिनों गांव-गांव में बही बांची जा रही है।
पीढ़ियों का है वर्णन
बही लेखन परपरा से जुड़ेरावजी नरपत भाट के अनुसार उनकी बही में बज्जू क्षेत्र सहित मारवाड़ के कई गांवों की अलग-अलग जातियों एवं इनसे जुड़े परिवारों की एक साथ कई पीढ़ियों की संपूर्ण जानकारी दर्ज है। कोई परिवार किस गांव में कब और कहां से आया तथा उनके पूर्वजों की कई पीढ़ियों के नाम एवं उनके परिवारों में समय-समय पर हुए बड़े आयोजनों सहित कई प्रकार की जानकारियां दर्ज हैं। गांवों में विभिन्न जातियों या परिवारों में उनकी वंशावली का वाचन करने के लिए रावजी (भाट) को बुलाया (बिठाया) जाता है, तो उनके आगमन पर कुटुंब में त्योहार जैसा उत्साह रहता है। गांवों में किसी बड़े-बुजुर्ग के निधन के बाद बैठक रस्म उठाने के समय भी बही का वाचन करवाया जाता है। वर्तमान समय में बही के वाचन में युवा वर्ग कम दिलचस्पी ले रहा है, लेकिन नाम जुड़वाने में उत्सुकता दिखाता है।