FII vs DII: विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) की NSE पर लिस्टेड कंपनियों में हिस्सेदारी घटकर 15.98% हो गई है, जो पिछले 12 वर्षों का सबसे निचला स्तर है। एनएसडीएल के आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर में FIIs की स्टॉक होल्डिंग 8.8% गिरकर 77.96 लाख करोड़ रुपये से घटकर 71.08 लाख करोड़ रुपये रह गई है।
FII vs DII: भारतीय शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) की हिस्सेदारी में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर लिस्टेड कंपनियों में विदेशी निवेशकों की कुल हिस्सेदारी अब घटकर 15.98% पर आ गई है, जो पिछले 12 सालों का सबसे निचला स्तर है। यह आंकड़ा इस बात का संकेत है कि विदेशी निवेशकों का भारतीय शेयर बाजार (FII vs DII) में विश्वास हालिया महीनों में कमजोर हुआ है। एनएसडीएल पर मौजूद आंकड़ो के मुताबिक विदेशी निवेशकों की अक्टूबर में स्टॉक होल्डिंग सितंबर में 77.96 लाख करोड़ रूपये से 8.8 फीसदी गिरकर 71.08 लाख करोड़ पर आ गई हैं। म्यूच्यूअल फंड्स की हिस्सेदारी अक्टूबर में मासिक आधार पर 9.32 फीसदी से उछलकर 9.58 फीसदी के रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गई है।
विदेशी संस्थागत निवेशक, जिसे आमतौर पर FII (Foreign Institutional Investor) कहा जाता है, ऐसे विदेशी संस्थान, कंपनियां या फंड होते हैं, जो दूसरे देशों के वित्तीय बाजारों (FII vs DII) में निवेश करते हैं। FII के जरिए भारत जैसे उभरते बाजारों में विदेशी पूंजी प्रवाहित होती है, जिससे बाजार की तरलता बढ़ती है और आर्थिक विकास को गति मिलती है।
भारतीय शेयर बाजार में FIIs का निवेश एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब FIIs बड़े पैमाने पर निवेश करते हैं, तो इससे बाजार में तेजी आती है और शेयरों की कीमतों में वृद्धि होती है। इसके विपरीत, जब FIIs अपनी पूंजी वापस निकालते हैं, तो बाजार में गिरावट देखी जाती है। रुपये के मूल्य, ब्याज दरों, और वैश्विक आर्थिक घटनाक्रमों पर FIIs का निवेश निर्भर करता है।
डीआईआई का पूरा नाम घरेलू संस्थागत निवेशक (Domestic Institutional Investors) है, जो उन संस्थाओं को संदर्भित करता है जो घरेलू बाजार में बड़े पैमाने पर निवेश करती हैं। इनमें म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियाँ, बैंक, पेंशन फंड, और अन्य भारतीय वित्तीय संस्थान शामिल होते हैं। डीआईआई का मुख्य उद्देश्य भारतीय शेयर बाजार में निवेश करके अपने ग्राहकों या सदस्यों के लिए रिटर्न उत्पन्न करना होता है।
अक्टूबर 2024 में, FIIs की घटती हिस्सेदारी के विपरीत, भारतीय म्यूचुअल फंड्स ने बाजार में अपनी पकड़ को और मजबूत किया है। म्यूचुअल फंड की हिस्सेदारी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है, जिससे यह साफ होता है कि भारतीय निवेशक घरेलू इक्विटी बाजार में अधिक भरोसा दिखा रहे हैं। सितंबर में कुल म्यूचुअल फंड्स की संपत्ति का मूल्य 76.80 लाख करोड़ रुपये था, जो अक्टूबर में और बढ़ने के आसार में है।
विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी में इस गिरावट के पीछे कई कारण हैं। वैश्विक आर्थिक अस्थिरता, अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी और कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव जैसे कारकों ने विदेशी निवेशकों को भारतीय बाजार से पूंजी निकालने के लिए मजबूर किया है। इसके अलावा, चीन और अन्य उभरते बाजारों में निवेश के नए अवसर भी विदेशी पूंजी को भारत से बाहर खींच रहे हैं।
यह गिरावट भारतीय बाजार में विदेशी निवेश (FII vs DII) की स्थिति को कमजोर करती है। जहां पिछले वर्षों में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार (FII vs DII) में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी निभाई थी, वहीं अब इनका रुझान घट रहा है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो भारतीय कंपनियों के शेयर की कीमतों पर और अधिक असर पड़ सकता है, और बाजार (FII vs DII) की स्थिरता पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं।