Load On Electricity Consumers: लाखों बिजली उपभोक्ताओं पर 5900 करोड़ रुपये का भार डालने की तैयारी तेज हो गई है। शासन और ऊर्जा निगम के बीच चल रही खींचतान का खामियाजा बिजली उपभोक्ताओं को चुकाना पड़ सकता है। संभावना जताई जा रही है कि बिजली दरों में बढ़ोत्तरी के जरिए आम उपभोक्ताओं से इतनी भारी भरकम रकम की वसूली की जा सकती है।
Load On Electricity Consumers:बिजली उपभोक्ताओं पर बड़ी मार पड़ने वाली है। ऊर्जा निगम उत्तराखंड में बिजली उपभोक्ताओं पर 5900 करोड़ रुपये का भार डालने की तैयारी कर रहा है। ये अतिरिक्त बोझ शासन और ऊर्जा निगम के बीच 5900 करोड़ रुपये को लेकर खींचतान के कारण पड़ने जा रहा है। यूपीसीएल शासन से उत्तर प्रदेश के समय हस्तांतरित हुईं योजनाओं के एवज में मिलने वाले 5900 करोड़ का भुगतान करने की मांग कर रहा है। बताया जा रहा है कि शासन न सिर्फ इस बजट को बिजली दरों में शामिल करने का दबाव बना रहा है। बल्कि, उल्टा ऊर्जा निगम से इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी, वॉटर सेस, फ्री पावर का बकाया 6000 करोड़ रुपये मांग रहा है। इससे साफ है कि आने वाले दिनों में उत्तराखंड के लाखों बिजली उपभोक्ताओं की जेब धीरे-धीरे ढीली होने वाली है। इस 5900 करोड़ रुपये की वसूली बिजली के बढ़े हुए बिल के रूप में उपभोक्ताओं से वसूला जाएगा। इधर, आवास सचिव दलीप जावलकर के मुताबिक ऊर्जा निगम से पूछा गया है कि उसने किस आधार पर एसेट का 5900 करोड़ का आकलन किया है। इसका ब्यौरा मांगा गया है। निगम की ओर से फ्री पावर, वाटर सेस, इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी का भी पैसा नहीं दिया जा रहा है। यूपीसीएल को मैकेंजी की रिपोर्ट के आधार पर शासन से एमओयू करना है। वहीं दूसरी ओर प्रमुख ऊर्जा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम के मुताबिक, 5900 करोड़ की इस धनराशि को शासन को दिए जाने वाले पैसे से बुक एडजस्टमेंट किए जाने का प्रस्ताव रखा गया था। इस पर वित्त की ओर से आपत्ति लगाई गई है। यदि इस बजट को आम जनता पर डाला गया तो बिजली दरें बहुत अधिक बढ़ जाएंगी। ऐसे में इस विषय पर विचार मंथन जारी है।
यूपी से अलग होने के बाद उत्तराखंड ऊर्जा निगम को एसेट के रूप में 1058 करोड़ की योजनाएं मिलीं थी। इन योजनाओं के आधार पर ऊर्जा निगम ने विद्युत नियामक आयोग से मेंटनेंस, कैरिंग कॉस्ट, डेप्रिसिएशन का लाभ मांगा था। नियामक आयोग ने पहले शासनादेश कराने के निर्देश दिए। 2012 में जाकर जीओ हो पाया। इसके बाद आयोग ने नोटिफिकेशन मांगा, जो 2023 में जाकर हुआ। इस बीच ये 1058 करोड़ बढ़कर 5099 करोड़ हो गए। अब शासन इतनी बड़ी राशि ऊर्जा निगम के साथ एडजस्ट करने को तैयार नहीं है।
ऊर्जा निगम 5900 रुपये की बकाएदारी के मामले को कैबिनेट में भी ले गया था। तब प्रस्ताव रखा गया कि ऊर्जा निगम को जो करीब 6000 करोड़ रुपये शासन को देने हैं, सरकार उसे इस पैसे के साथ बुक एडजस्टमेंट कर ले। ताकि शासन और ऊर्जा निगम दोनों की बैलेंसशीट साफ हो जाए। वित्त विभाग की आपत्ति के बाद ये प्रस्ताव कैबिनेट से पास नहीं हो पाया था। शासन इस पैसे को विद्युत नियामक आयोग से बिजली दरों में पास कराने का दबाव बना रहा है। ऐसा करने पर बिजली दरें आसमान पर पहुंच जाएंगी। ऊर्जा निगम को आयोग में अलग से पिटिशन फाइल करने को कहा गया है।ऊर्जा निगम यदि इस प्रस्ताव को आयोग में भेजता है, तो जनता पर बड़ा बोझ पड़ेगा। बिजली दरों में 50 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोत्तरी हो जाएगी।