Margashirsha Purnima Katha: हिंदी कैलेंडर का नवां और अंग्रेजी कैलेंडर का दसवां महीना धार्मिक और खगोलीय दोनों लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। खगोलविदों के अनुसार आज की रात सबसे लंबी होती है और आज यह रात के उच्चतम पथ का अनुसरण करता है, इसीलिए इसे कोल्ड मून कहते हैं। लेकिन कथा से आइये जानते हैं इसका धार्मिक महत्व क्या है ..
Margashirsha Purnima Katha: अंग्रेजी कैलेंडर का आखिरी और हिंदू कैलेंडर का नवां महीना मार्गशीर्ष जप तप के लिए विशेष है, यह सभी 12 महीनों में श्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए भगवान विष्णु ने स्वयं के लिए एक बार कहा था कि मैं महीनों में मार्गशीर्ष हूं। खगोल विज्ञानियों की मानें तो आज की रात उत्तरी गोलार्ध में सबसे लंबी होती है। इसलिए आज की पूर्णिमा को कोल्ड मून जैसे नामों से भी जाना जाता है। बहरहाल मार्गशीर्ष पूर्णिमा की कथा से आइये जानते हैं इसका महत्व ..
मार्गशीर्ष पूर्णिमा की कथा के अनुसार एक बार नारद मुनि घूमते-घूमते देवलोक पहुंचे और सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती सभी देवियों से कहा कि- अत्रिपत्नी अनसूइया के समक्ष आपका सतीत्व नगण्य है। इससे तीनों देवियों में अहंकार ने जन्म ले लिया, उन्होंने त्रिदेवों विष्णु, महेश और ब्रह्मा से देवर्षि नारद की बात बताई और उनसे अनसूइया के पति व्रत की परीक्षा लेने के लिए कहा। तीनों देवताओं ने बहुत समझाया लेकिन तीनों देवियां हठ कर बैठीं। मजबूरी में तीनों देवता साधुवेश धारण करके अत्रिमुनि के आश्रम में जा पहुंचे। इस समय महर्षि अत्रि आश्रम में नहीं थे।
अतिथियों को आया देख देवी अनसूइया ने उन्हें प्रणाम कर अर्घ्य, कंदमूल आदि अर्पित किए, लेकिन साधु बोले- हम लोग तब तक आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे, जब तक आप हमें अपनी गोद में बिठाकर भोजन नहीं करातीं। यह सुनकर देवी अनुसूइया आश्चर्यचकित रह गईं, लेकिन आतिथ्य धर्म की मर्यादा को देखते हुए उन्होंने नारायण का ध्यान किय, फिर अपने पति का स्मरण किया।
इस पर उन्हें त्रिदेवों की लीला समझ में आ गई, उन्होंने मन ही मन प्रार्थना की कि यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तो यह तीनों साधु छह-छह मास के शिशु हो जाएं। इतना कहना ही था कि तीनों देव छह माह के शिशु बन गए और बच्चों की तरह रोने लगे। इस पर माता ने तीनों को गोद में लिया और दुग्ध पान कराया, फिर पालने में झुलाने लगीं। इस तरह कुछ समय व्यतीत हो गया।
इधर देवलोक में जब तीनों देव नहीं लौटे तो तीनों देवियां परेशान हो गईं। इधर नारद मुनि भी उनके पास पहुंचे और आश्रम में घटी घटना के बारे में बताया। इस पर तीनों देवियां सती अनुसूइया के पास आईं और उनसे क्षमा मांगकर अपने पति को वापस करने की प्रार्थना की। इस प्रकार देवी अनसूइया ने अपने पातिव्रत्य से तीनों देवों को पूर्वरूप में कर दिया। फिर तीनों देवों ने प्रसन्न हो अनसूइया से वर मांगने को कहा तो वे बोलीं- आप तीनों देव मुझे पुत्र रूप में प्राप्त हों।
तीनों देव और देवियां तथास्तु कहकर अपने लोक चले गए। फिर कालांतर में यही तीनों देव सती अनसूया के गर्भ से प्रकट हुए और दत्तात्रेय कहलाए। इनमें तीनों देवताओं की शक्तियां थीं, इसी कारण हर साल मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि को श्रीविष्णु के ही अवतार भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है।
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