. मानव को धर्म का पालन करने के साथ-साथ नैतिकता और ईमानदारी कभी भी नहीं छोड़नी चाहिए । जब तक नैतिकता पालन नहीं होता तब तक धार्मिकता में प्रवेश नहीं हो सकता है। यह बातें देवनहल्ली जैन तीर्थ में आयोजित धर्मसभा में कमल मुनि कमलेश ने कही। उन्होंने कहा कि सभी धर्म की उपासना पद्धति […]
. मानव को धर्म का पालन करने के साथ-साथ नैतिकता और ईमानदारी कभी भी नहीं छोड़नी चाहिए । जब तक नैतिकता पालन नहीं होता तब तक धार्मिकता में प्रवेश नहीं हो सकता है।
यह बातें देवनहल्ली जैन तीर्थ में आयोजित धर्मसभा में कमल मुनि कमलेश ने कही। उन्होंने कहा कि सभी धर्म की उपासना पद्धति अलग हो सकती है। आराध्या अलग हो सकते हैं परंतु सभी धर्मों में नैतिकता ही धार्मिकता का प्रवेश द्वार होता है। विश्व के सभी महापुरुषों ने नैतिकता और ईमानदारी अपनाने को ही प्राथमिकता दी है। यही धर्म का असली प्राण होता है। आध्यात्मिकता की दुहाई देने वाले के जीवन में नैतिकता का अभाव नहीं होना चाहिए। पहले नैतिक बनें, बाद में धार्मिक बनें। इससे स्वयं के साथ दूसरों का कल्याण किया जा सकता है। मुनि ने कहा कि धर्माचार्यों को मिलकर धर्मस्थल की पवित्रता के कार्य को प्राथमिकता देना चाहिए। जैन श्रावक संघ दोड्डबल्लापुर के प्रकाश बोहरा, रमेश कवाड़, राकेश पुंगलिया, अशोक कोठारी, सुजीत मकाणा, सुरेश गादिया, नेमीचंद मुथा, केवलचंद जैन ने विहार सेवा का लाभ लिया। आचार्य चंद्रयश सूरीश्वर ने कमल मुनि, घनश्याम मुनि, अक्षत मुनि, कौशल मुनि व सक्षम मुनि को मंगल विदाई दी।