Mahabharta: त्रिकालदर्शी होने बावजूद भी सहदेव ने कभी स्वयं को श्रेष्ठ नहीं माना। उन्होंने अपने इस ज्ञान को केवल धर्म के मार्ग पर चलने और अपने भाइयों की सहायता के लिए उपयोग किया।
Mahabharta: महाभारत महाकाव्य की बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं। वहीं कौरव और पांडवों के बीच हुए युद्ध के किस्से लोगों को याद भी हैं, जिनका जिक्र वह समय-समय पर करते रहते हैं। लेकिन आज हम आपको ऐसी कहानी बताएंगे। जो आपने पहले शायद ही पढ़ी या सुनी होगी। यह कहानी केवल पांडवों से जुड़ी हुई है। आइए जानते हैं इस रोचक कहानी के बारें में। जिसने अपने ही पिता पाण्डु का मस्तिष्क खाया था।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माजा जाता है कि राजा पांडु बहुत बडे़ विद्वान थे। वह अपने पांचों पुत्रों को ज्ञानी बनाना चाहते थे। ऐसा माना जाता है कि राजा पांडु की अंतिम इच्छा थी कि उनकी मृत्यु के बाद पांचों बेटे उनके मस्तिष्क को खाएं। उनका मानना था कि जो ज्ञान उन्होंने अर्जित किया है। वह उनके पांचों पुत्रों को ही मिले। लेकिन राजा पांडु की इस बात को केवल सहदेव ने ही स्वीकार किया। बाकि चार पुत्रों ने इंनकार कर दिया था।
जब राजा पांडु का निधन हुआ तो उनकी पत्नियां कुंती और माद्री उनके अंतिम संस्कार की तैयारी कर रही थीं। इस मौके पर सहदेव भी वहां मौजूद थे। जो पांडु के सबसे छोटे पुत्र थे। ऐसा माना जाता है कि सहदेव अपने पिता के शव के पास गए और अपने पिता के मस्तिष्क खा लिया। क्योंकि उनकी भावना थी कि ऐसा करने से उन्हें अपार ज्ञान और भविष्य देखने की शक्ति प्राप्त होगी।
ऐसा माना जाता है कि सहदेव को ऐसा करने से अपार ज्योतिषीय और रहस्यमय ज्ञान प्राप्ति हुई थी। उन्हें ब्रह्मांड के रहस्यों और भविष्य की घटनाओं की गहरी जानकारी हो गई। मान्यता है कि सहदेव ने अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए ऐसा किया। क्योंकि पांडु ने स्वयं सहदेव को यह निर्देश दिया था कि वह उनके मस्तिष्क को खाए। जिससे वह ज्ञान प्राप्त कर सके।