Bhishma Pitamah: महाभारत का अभिन्न अंग और महायोद्धा भीष्म पितामह के जन्म कहानी बड़ी ही रोचक है। इनके जन्म के बाद मां गंगा इनको स्वर्ग लोक लेकर चली गईं। वहीं राजा शांतनु को अकेला रहना पड़ा था।
Bhishma Pitamah: भीष्म पितामह महाभारत के प्रवीण पात्रों में से एक थे। जिनको आज भी प्रतिज्ञा, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। इनको महायोद्धा के रूप में जाना जाता है। क्योंकि भीष्म पितामह को महाभारत का कोई भी योद्धा हरा नहीं पाया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस महायोद्धा के माता-पिता कौन थे और वह अपने माता पिता के कौन से पुत्र थे? आइए जानते हैं भीष्म पितामह की यह रहस्यमयी कहानी।
धार्मिक कथाओं के अनुसार हस्तिनापुर के राजा शांतनु ने गंगा से विवाह करने की इच्छा प्रकट की तो गंगा शादी के लिए राजी हो गईं। लेकिन साथ ही यह वचन भी लिया कि राजा उनके किसी भी कार्य पर कोई रोक-टोक नहीं करेंगे। राजा शांतनु ने गंगा की इस शर्त को मानते हुए शादी करली। विवाह के कुछ समय बाद जब गंगा को पुत्र की प्राप्ति हुई तो उन्होंने उसे नदी में प्रवाहित कर दिया। राजा शांतनु इस पर कुछ नहीं कह पाए। क्योंकि वह गंगा को पहले ही वचन दे चुके थे। लेकिन गंगा ने इसी तरह अपने सात पुत्रों को नदी में प्रवाहित कर दिया। जब गंगा ने 8वें पुत्र को जन्म दिया और उसे नदी में प्रवाहित करने के लिए लेकर चलीं तो राजा ने उन्हें रोक दिया। इस बात से गंगा नाराज हो गई। साथ ही राजा शांतनु को छोड़ दिया। और अपने आठवें पुत्र को स्वर्ग लोक ले जाकर उसका पालन-पोषण करने लगीं। जिसका नाम देवव्रत पड़ा।
हस्तिनापुर के राजा शांतनु के पुत्र देवव्रत ने हस्तिनापुर के राजगद्दी की रक्षा के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य और राजगद्दी न लेने की प्रतिज्ञा ली। जिसके बाद उन्हें भीष्म कहा गया। भीष्म का सही अर्थ भीषण प्रतिज्ञा करने वाला होता है। भीष्म पितामह का असली नाम देवव्रत था।
भीष्म पितामह को धर्म, नीति और कर्तव्य का प्रतीक माना जाता है। महाभारत में उनकी भूमिका निर्णायक थी। वे कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों के सेनापति बने और अपनी मृत्युशैया पर उन्होंने पांडवों को ज्ञान और उपदेश दिए।