जयपुर

प्रवासी नीति, दक्षिण पंथ और चीन के उभार पर यूरोप अगले सप्ताह सुनाएगा फैसला

यूरोपीय संघ के 27 देशों में 6 से 9 जून तक चुनाव होने जा रहे हैं। इस दौरान लगभग 37 करोड़ मतदाता यूरोपियन संसद के 720 सदस्यों को चुनेंगे। ये दुनिया की अकेली सीधी चुनी हुई इंटरनेशनल असेंबली है। मतदाताओं की संख्या के हिसाब से देखें तो ये भारत के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े चुनाव हैं। भारत में चुनाव के एक सप्ताह बाद यूरोपियन यूनियन में होने जा रहे चुनाव का असर केवल वहीं तक सीमित नहीं, बल्कि इसका फर्क पूरी दुनिया पर दिखाई देगा।

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Jun 02, 2024

यूरोपीय संसद के चुनावः भारत के बाद अब अब दुनिया के दूसरे सबसे बड़े चुनाव पर होंगी दुनिया की नजरें

भारत में आम चुनावों के बाद अब सारी दुनिया की नजर यूरोपियन यूनियन के अगले सप्ताह होने वाले चुनावों पर है। यूरोपीय संघ के 37 करोड़ मतदाता 6 से 9 जून तक मतदान के जरिए अगली यूरोपीय संसद के 720 सदस्यों का चुनाव करेंगे। यह सभी सांसद अगले पांच साल तक यूरोप के लिए बनाई जाने वाली नीतियों पर फैसला करेंगे। यूरोप की इस संसद में सभी 27 देशों से उनकी आबादी के अनुसार सांसद चुने जाते हैं। आबादी बढ़ने के साथ सांसद भी बढ़ जाते हैं। 2019 के चुनाव में 705 सदस्यों का चुनाव किया गया था, वहीं 2024 में इनकी संख्या 720 हो गई है। सबसे अधिक आबादी वाला जर्मनी 96 सांसद भेजता है, पुर्तगाल को 21 तो वहीं साइप्रस जैसै छोटे देश से सिर्फ एक सांसद ही यूरोप की संसद में भेजा जाएगा।
माना जा रहा है कि यूरोप का मतदाता मुख्य रूप यूक्रेन युद्ध विभीषिका और उसके चलते बढ़ती महंगाई, चीन का उभार, प्रवासियों की तेजी से बढ़ती संख्या से निपटने से लेकर जलवायु परिवर्तन जैसे मुख्य मुद्दों को लेकर मतदान करेगा। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती होती है 27 देशों के राजनीतिक दलों की ओर से यूरोप की संसद के लिए भेजे गए प्रतिनिधि का संसद में राजनीतिक प्रतिनिधित्व और रुझान। इसके लिए सभी देशों के संसद अपने राजनीतिक रुझान जैसे के वामपंथी, समाजवादी, मध्यम मार्गी या दक्षिण पंथी के आधार पर समूह बनाते हैं। चुनाव पूर्व सभी सर्वेक्षणों के अनुसार इस बार के चुनावों में मध्यम-दक्षिणपंथी के बजाए दक्षिण पंथी सांसदों की संख्या बढ़ेगी।

इस तरह होते हैं चुनाव
अधिकांश यूरोपीय संघ के देशों में 9 जून को चुनाव होते हैं, लेकिन नीदरलैंड में 6 जून को, आयरलैंड और चेक गणराज्य में 7 जून को और माल्टा, स्लोवाकिया और लातविया में 8 जून को मतदान होना तय किया गया है।

तीन स्तंभों में से एक है यूरोपीय संसद
यूरोपीय संघ को चलाने वाली तीन संस्थाओं में से एक है यूरोपीय संसद, जो 27 देशों के इस ब्लॉक को चलाती है। यूरोपीय संघ की सरकारों के साथ मिलकर यह यूरोपीय कमीशन द्वारा प्रस्तावित कानूनों पर निर्णय लेती है। इसकी बनाई नीतियां लगभग 45 करोड़ लोगों के यूरोपीय संघ के बाजार को नियंत्रित करती हैं। जाहिर तौर पर इसके पास यूरोपीय कमीशन या सदस्य देशों की राष्ट्रीय सरकारों जितनी शक्ति नहीं है। लेकिन यह कानून को अस्वीकार कर सकता है या उसमें पर्याप्त संशोधन कर सकता है और प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित एकमात्र यूरोपीय संघ संस्था होने के कारण इसकी घोषणाओं का राजनीतिक प्रभाव होता है।

यूरोपीय संसद में होगा सत्ता परिवर्तन
सर्वेक्षणों से पता चलता है कि मौजूदा संसद में मुख्य समूह जैसे केंद्रवादी-दक्षिणपंथी, केंद्रवादी-वामपंथी, ग्रीन्स और उदारवादियों को वर्तमान की तुलना में कम बहुमत मिलेगा, जबकि अति दक्षिणपंथी समूहों को बढ़त मिलेगी। सर्वेक्षणों के अनुसार, 720 सदस्यों वाले सदन में मध्यमार्गी समूह की सीटें घटेंगी जबकि लोकलुभावन दक्षिणपंथी आइडेंटिटी एंड डेमोक्रेसी (आईडी) समूह तथा यूरोपीय कंजर्वेटिव और रिफॉर्मिस्ट (ईसीआर) के सांसदों की संख्या बढ़ सकती है। लेकिन देखना होगा क्या वे 361 की बहुमत हासिल कर सकेंगी।

इन मुद्दों पर बदल सकता है संसद का रुख

  • यूरोप में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लक्ष्य 2050 तक जीरो करना
  • चीन और अमरीका के विरुद्ध यूरोपीय संघ को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने को नीतियों पर असर
  • प्रवासी संबंधी नीतियों में सख्ती
  • ऊर्जा की कीमतें कम तथा स्थिर रखने के लिए एक यूरोपीय ऊर्जा संघ का निर्माण और वैकल्पिक ऊर्जा आपूर्तिकर्ता की खोज
  • यूरोपीय संघ की रक्षा उत्पादन क्षमताओं को बढ़ावा देना
  • यूरोपीय संघ के विस्तार करते हुए यूक्रेन, मोल्दोवा और पश्चिमी बाल्कन देशों को शामिल करना
  • यूरोपीय संघ के भविष्य का स्वरूप
Updated on:
02 Jun 2024 10:52 pm
Published on:
02 Jun 2024 10:51 pm
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