जयपुर की कला, संस्कृति और परंपरा को पंच गौरव कार्यक्रम नई पहचान दे रही है। सांगानेरी प्रिंट, ज्वैलरी, घेवर और औषधीय खेती वैश्विक मंच पर चमक रही है। कारीगरों को प्रशिक्षण, सुविधाएं और प्रोत्साहन देकर आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ रहे हैं।
जयपुर: गुलाबी नगरी की धड़कनों में कला और संस्कृति बसी है। यही वजह है कि लाखों सैलानी यहां आते हैं। आने वाले समय में पंच गौरव कार्यक्रम धरातल पर उतरेगा तो शहर और चमकेगा। आत्मनिर्भरता के द्वार भी खुलेंगे।
जयपुर की पहचान ज्वैलरी बाजार, सांगानेरी-बगरू प्रिंट, घेवर की मिठास, ऐतिहासिक पर्यटन स्थल और आंवला-लसोड़े हैं। भविष्य में परंपरा और नवाचार को एक सूत्र में पिरोकर जयपुर को आत्मनिर्भरता और वैश्विक पहचान की ओर ले जाएगी।
ब्लॉक प्रिंटिंग (सांगानेरी और बगरू प्रिंट) अब वैश्विक मंच पर खास पहचान बना चुकी है। वर्ष 2011 के बाद से इस उद्योग में दोगुनी वृद्धि हुई है। सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
कारीगरों की संख्या घट रही है और युवा पीढ़ी अन्य नौकरियों की ओर बढ़ रही है। ऐसे में आवश्यक है कि सरकार प्रशिक्षण केंद्र स्थापित कर नई पीढ़ी को इस विरासत से जोड़े।
-आशीष जैन, एंटरप्रिन्योर, सांगानेर
यहां पर्यटकों के लिए आमेर फोर्ट, हवामहल, सिटी पैलेस, नाहरगढ़, जंतर-मंतर जैसी धरोहर हैं। यहां के बाजार, पारंपरिक व्यंजन और सांस्कृतिक वैभव पर्यटकों को सात समंदर पार से खींचता है।
शहर की बड़ी आबादी पर्यटन व्यवसाय से जुड़ी है। ट्रैफिक, अतिक्रमण, अव्यवस्थित पार्किंग और निराश्रित जानवर बड़ी समस्या हैं। इन पर काम करने की जरूरत है।
-संजय कौशिक, पर्यटन विशेषज्ञ
जयपुर कुंदन जड़ाई और मीनाकारी के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां के दो लाख कारीगर देश के विभिन्न हिस्सों से आकर इस कला को जीवित रखे हुए हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिये युवा पीढ़ी इस कला को आधुनिकता से जोड़ रही है।
ज्वैलरी उद्योग से जयपुर की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। परकोटा क्षेत्र में संसाधन और सुरक्षा का अभाव है।
-कैलाश मित्तल, अध्यक्ष, सरार्फा ट्रेडर्स कमेटी
त्योहारों की मिठास घेवर के बिना अधूरी है और अब इसका स्वाद जयपुर तक सीमित नहीं रहा। अमरीका, यूके, दुबई और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी घेवर की खासी मांग बढ़ रही है।
घेवर को जीआई टैग दिलाना जरूरी है, ताकि इसकी विशिष्टता सुरक्षित रहे। फूड प्रोसेसिंग जोन और पैकेजिंग यूनिट्स विकसित कर निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए।
-नवीन कुमार हरितवाल, ऑनर, स्वीट कैटर्स
जिले के किसान औषधीय खेती की ओर बढ़ रहे हैं। इसमें आंवला अहम फसल है। जिले की करीब चार प्रतिशत जमीन पर आंवले की खेती हो रही है। हर वर्ष लगभग पांच लाख पौधे लगाए जाते हैं।
राजस्थान का औषधीय पादप बोर्ड निष्क्रिय है। जैविक खेती, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग के लिए नियमित प्रशिक्षण भी जरूरी है।
-डॉ. अतुल गुप्ता, चेयरमैन, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस एग्रीकल्चर स्किल डवलपमेंट
आज भी कई पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है, ताकि शहर के गर्व को नई ऊंचाई मिल सके। ब्लॉक प्रिंट से लेकर अन्य उत्पाद देश-दुनिया में वियात है।
-रवींद्र शर्मा, शिक्षाविद्
सरकार के स्तर पर प्रोत्साहन मिले, ताकि युवा पीढ़ी भी पुश्तैनी कार्य में जुड़कर अपने हुनर को आगे बढ़ा सके।
-ज्योति सैनी, समाजसेवी
पंच गौरव योजना से जिले को बहुमुखी पहचान मिली है। एक जिला एक उपज आंवला और एक जिला एक वनस्पति प्रजाति लसोड़ा के तहत जिले में विस्तृत कार्य योजना बनाकर पौधरोपण किया जा रहा है।
-डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी, जिला कलेक्टर