राजस्थान की शहरी सरकारों ने नगरीय विकास कर (यूडी टैक्स) वसूलने के नाम पर नोटिस थमाए जा रहे हैं।
अश्विनी भदौरिया
राज्य की शहरी सरकारों ने नगरीय विकास कर (यूडी टैक्स) वसूलने के नाम पर पिछले दो माह से खूब मनमानी हो रही है। भले ही मकान या दुकान किसी ने पांच या सात वर्ष पहले ही बनाई हो, लेकिन वसूली के नोटिस वर्ष 2007 से थमाए जा रहे हैं। मकान या प्रतिष्ठान सील होने के डर से कई लोगों ने तो वर्ष 2007 से यूडी टैक्स जमा करवा दिया। अब बाकी पैसा कब मिलेगा, कोई बताने के लिए तैयार नहीं है। शहरी सरकारें की इस मनमानी से आम जन पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।
पिछले दो माह की बात करें तो खाली खजाना भरने की चाह में व्यापारियों से लेकर आम आदमी को प्रॉपर्टी सील करने के नाम पर डराया गया। जबरन नोटिस थमाए गए। लक्ष्य पूर्ति के लिए नियम कायदों को शहरी सरकारों ने ताक पर रख दिया। सबसे बुरा हाल नगर निगमों में रहा। यहां लोगों को एक से सवा करोड़ रुपए के नोटिस तक थमा दिए। वहीं, निकायों के अधिकारियों का तर्क है कि नगरीय विकास कर नियम वर्ष 2007 से प्रभावी हुए। और टैक्स आदमी पर न होकर प्रॉपर्टी पर होता है। ऐसे में यदि किसी को कोई आपत्ति होती है तो उसको सुनकर टैक्स में संशोधन किया जाता है।
जयपुर सहित कई निकायों में कर वसूली का काम निजी फर्म स्पैरो को दे रखा है। जबकि, ये नियम विरुद्ध है। राजस्थान नगर पालिका अधिनियम में बिन्दु संख्या 127 में मुख्य नगर पालिका अधिकारी या उनकी ओर से प्राधिकृत कोई अधिकारी करों की उचित वसूली के लिए उत्तरदायी होंगे। इसके अलावा वर्ष 2016 में स्वायत्त शासन विभाग ने जारी अधिसूचना में लिखा कि निकाय कर की वसूली अपने संसाधनों से करेंगे। एजेंसी का काम रिकॉर्ड संधारण से लेकर इसे कम्प्यूटराइज्ड करने, मांग पत्र जारी करने और सर्वे का ही होगा।
जयपुर सहित अन्य बड़े शहरों में मनमानी के नोटिस से लोग पिछले दो माह में परेशान हुए। पहले निकायों ने गलत नोटिस दिए। लक्ष्य पूरा करने के लिए पूरा टैक्स जमा करने का आम जनता पर दबाव बनाया गया। इस दौरान निगम अधिकारी लोगों को आश्वस्त करते हैं कि शेष पैसा वापस कर दिया जाएगा।
हो रहा ये: जयपुर सहित राज्य के कई नगर निगमों में यूडी टैक्स वसूली का काम निजी हाथों में है। फर्म के कार्मिक मनमानी करते हैं।
करोड़ से अधिक वसूली राजधानी में, पिछले वर्ष की तुलना में 49% अधिक
वर्ष 2007 से नोटिस थमाकर निजी फर्म के प्रतिनिधि लोगों को घनचक्कर बनाते हैं। नोटिस के बाद लोग बताते हैं कि उसने सम्पत्ति कब खरीदी। इसके लिए वो रजिस्ट्री सहित अन्य कागजात पेश करता है। फिर भी समाधान नहीं हो पाता।
हमने वर्ष 2020 में मकान खरीदा। यूडी टैक्स के 75 हजार रुपए पूरे भरवा लिए। गणना वर्ष 2007 से की गई। इसके बाद शेष राशि को वापस मांगने के लिए चक्कर लगा रहे हैं।- किशन भाटी एवं सुमित्रा भाटी, जोधपुर
आवासीय-
300 और 300 वर्ग गज से अधिक
1500-1500 वर्ग फीट से अधिक
व्यावसायिक-
100 और 100 वर्ग गज से अधिक