बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने की कवायद फेल हो रही है। इसका दुष्परिणाम भी सामने आने लगा है।
अरुण कुमार। बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने की कवायद फेल हो रही है। इसका दुष्परिणाम भी सामने आने लगा है। कई अध्ययन बताते हैं कि पढ़ाई के दौरान बच्चे हर 20 मिनट में सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर जाते हैं। इस दौरान 13 से 17 साल तक के 73% बच्चे जाने-अनजाने में आपत्तिजनक और अश्लील सामग्री देखते हैं और उनका स्कूल वर्क लेट हो जाता है।
माता-पिता यदि गौर करें तो पाएंगे कि उनका बच्चा एक घंटे की बजाय तीन घंटे में स्कूल वर्क कर रहा है। इसकी वजह इंटरनेट पर उपलब्ध पोर्न सामग्री है इसका दुष्प्रभाव ऐसा है कि पोर्न देखने के आदी बच्चे बलात्कार को सामान्य बात समझने लगते हैं।
वैसे तो सोशल मीडिया पर बच्चों के अकाउंट नहीं खोले जा सकते और न ही उनके नाम से मोबाइल कनेक्शन लिया जा सकता है, फिर भी माता-पिता या अभिभावक के फोन व अकाउंट का वे धड़ल्ले से दुरुपयोग कर रहे हैं। स्कूल या घर पर पढ़ाई में इंटरनेट और सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका के कारण माता-पिता भी बच्चों को इसकी छूट देने के लिए बाध्य हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ मिडलसेक्स, लंदन की रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चे एक बार पॉर्न देखने के बाद बार- बार उसे खोजते हैं। भारत में ऐसे बच्चों की उम्र 12 से 16 साल है। पोर्न कंटेंट के असर के चलते बच्चे महिलाओं के बारे में गलत समझ विकसित कर रहे हैं। उन्हें रेप सामान्य यौन प्रक्रिया लगता है। ये बच्चे कम उम्र में ही यौन संबंध बनाने का प्रयास करते हैं और विफल होने पर नशे का शिकार हो जाते हैं।
पोर्न साइटों पर प्रतिबंध के लिए अभियान चला रहे बेंगलूरु के गैर सरकारी संगठन रेस्क्यू के अनुसार मेट्रो शहरों में 10 वर्ष की आयु के बच्चे भी पोर्न देखते हैं। एनजीओ ने 10 कॉलेजों के 400 छात्रों पर सर्वेक्षण के आधार पर बताया कि हिंसक पोर्न कंटेंट देखने वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही है। इसमें कॉलेज के छात्र- छात्राओं की संख्या में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है।
भारत में अकेले पोर्न कंटेंट देखना अपराध नहीं है लेकिन पोर्नोग्राफी गैरकानूनी है। इसे महिला, पत्नी या दोस्त की दिखाना अवैध है। मूवी, फोटो, लिंक शेयर करना या ग्रुप में देखना अवैध है। चाइल्ड पोर्नोग्राफी में पोक्सो एक्ट के तहत सजा का प्रावधान है। हालांकि सामान्य मामले में पांच साल की सजा या 10 लाख के जुर्माने का प्रावधान है।
-स्कूलों में योन शिक्षा अनिवार्य हो और बच्चों-युवाओं से खुलकर बात हो।
-बच्चों के मोबाइल पर कोई भी सोशल मीडिया अकाउंट एक्टिव न करें।
-स्कूल में लड़के-लड़कियों को लेकर बच्चे के व्यवहार को टीचर से पूछें।
-बच्चे से दोस्ताना व्यवहार रखें और ब्राउजर हिस्ट्री भी चेक करते रहें।
-बिना बताए बच्चा मोबाइल न ले, संभव हो तो आपके सामने ही पढ़े।
-हर दिन बच्चे से स्कूल की पढ़ाई, दोस्तों और खेल-कूद के बारे में पूछें।
-गलती पर बच्चे को डांटे नहीं बल्कि बैठाकर प्यार से समझाएं।