राजस्थान में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से जुड़ी कम्पनियां किसी न किसी तरीके से उपभोक्ताओं की जेब ढीली भी कर रही हैं। कंपनियां उपभोक्ताओं को ‘डार्क पैटर्न’ के 10-स्तरीय जाल में फंसाकर लाखों रुपए वसूल रही हैं।
पुनीत शर्मा
Rajasthan: ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर घर बैठे हजारों रुपए की खरीदारी करना बेहद आसान है। लेकिन प्लेटफॉर्म से जुड़ी कम्पनियां किसी न किसी तरीके से उपभोक्ताओं की जेब ढीली भी कर रही हैं। कंपनियां उपभोक्ताओं को ‘डार्क पैटर्न’ के 10-स्तरीय जाल में फंसाकर लाखों रुपए वसूल रही हैं। इस पैटर्न में फंस चुके हजारों उपभोक्ता अपनी शिकायतें दर्ज करा चुके हैं, लेकिन राज्य का उपभोक्ता मामलात विभाग निपटारे की अब तक कोई ठोस रणनीति नहीं बना सका है।
केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ने सभी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को आदेश दिया है कि, तीन महीने के भीतर वे घोषणा करें कि उनके प्लेटफॉर्म ’डार्क पैटर्न फ्री’ हैं। आदेश न मानने वालों को ब्लैकलिस्ट किया जाएगा।
राज्य उपभोक्ता विभाग के पास न तो कोई ठोस योजना है और न ही आमजन में प्रचार-प्रसार की कोई रणनीति। कुछ ब्रोशर बनाए जरूर गए हैं, लेकिन वे सिर्फ उच्च स्तरीय बैठकों तक सीमित हैं।
कंपनियां जानती हैं कि उपभोक्ता किसी न किसी ’पैटर्न’ में फंसेगा ही और महंगा उत्पाद या सेवा खरीद लेगा। जैसे ही ग्राहक एक हथकंडे से बचता है, दूसरा सामने आ जाता है।
. फॉल्स अर्जेंसी: झूठी समय सीमा का दबाव कि ‘एक ही पीस बचा है’
. बास्केट स्नीकिंग: चयनित उत्पाद के साथ अतिरिक्त उत्पाद जोड़ देना
. कन्फर्म शैमिंग: उपहास या भय पैदा करना (जैसे बीमा न लेने पर असुरक्षित बताना)
. फोर्स्ड एक्शन: आधार या अन्य डाटा शेयर करने के लिए मजबूर करना
. सब्सक्रिप्शन ट्रैप: सदस्यता रद्द करने में धमकी देकर भ्रमित करना
. बेट एंड स्विच: एक उत्पाद का विज्ञापन करके दूसरा महंगा उत्पाद देना
. ड्रिप प्राइसिंग: कीमत कम बताकर बाद में अतिरिक्त शुल्क जोडऩा
. नैनिंग: बार-बार पॉपअप से बाधा डालना
. ट्रिक क्वेश्चन: भ्रमित सवालों से गलत विकल्प चुनवाना
. एसएसएस बिलिंग: ऐसी सेवाओं का शुल्क लेना जिनका उपयोग उपभोक्ता नहीं करता