इस साल अब तक केवल 6 नए रोगी सामने आए हैं। पिछले वर्षों के दौरान सरकारी और गैर सरकारी संगठनों की ओर से किए गए जन-जागृति के प्रयासों और जिला मुख्यालय पर उपचार की सुविधा मिलने से यह सुखद स्थिति बनी है।
एक्वायर्ड इम्युनो डेफिसिएंसी सिंड्रोम यानी एड्स, जिसे आज भी लाइलाज मर्ज माना जाता है और जिस बीमारी ने कभी देश-दुनिया के साथ सीमावर्ती जैसलमेर जिले को भी झकझोरने का काम किया था, आज इसकी रफ्तार न केवल थम चुकी है बल्कि इसके रोगियों की संख्या में लगभग स्थिरता आ चुकी है। इस साल अब तक केवल 6 नए रोगी सामने आए हैं। पिछले वर्षों के दौरान सरकारी और गैर सरकारी संगठनों की ओर से किए गए जन-जागृति के प्रयासों और जिला मुख्यालय पर उपचार की सुविधा मिलने से यह सुखद स्थिति बनी है।
देश-दुनिया में चिकित्सा शास्त्र के लिए अबूझ पहेली बने एड्स की रोकथाम के लिए बचाव को ही सर्वश्रेष्ठ उपचार माना गया। जानकारी के अनुसार जिले में वर्तमान में करीब 500 कुल एड्स रोगी या एचआइवी से ग्रस्त लोग हैं। इनमें से 185 जने जिला अस्पताल जवाहिर चिकित्सालय से उपचार ले रहे है। अन्य अपना उपचार जोधपुर से करवा रहे हैं। जैसलमेर जिला मुख्यालय स्थित सरकारी अस्पताल में एड्स की जांच और परामर्श की सुविधा है। जांच में पॉजिटिव पाए जाने पर मरीज को जोधपुर स्थित ई-आरटी सेंटर भेजा जाता है। वहां इसकी पुष्टि होने पर 6 माह तक उपचार दिए जाने के बाद केस को जैसलमेर पुन: रेफर कर दिया जाता है।
माना जाता है कि जैसलमेर जैसे सीमावर्ती और दूरस्थ जिले में पर्यटन व्यवसाय के कारण इस रोग की शुरुआत हुई। इसके अलावा कामकाज के सिलसिले में बाहर जाने वाले जिले के मूल बाशिंदे यह रोग बाहर से लाए। इस तरह से 1990 के दशक में एड्स ने जैसलमेर जिले में दस्तक दी। शुरुआती दौर में ऊंट सफारी के काम से जुड़े व्यक्तियों के विदेशी महिलाओं के संपर्क में आने से यह रोग प्रसारित हुआ। कुछ साल पहले राजस्थान विश्वविद्यालय की ओर से किए गए अध्ययन में भी ऊंट सवारों के तेजी से एचआइवी पॉजिटिव होने की जानकारी सामने आई थी। इसी कारण जिले में कुछ महिलाएं भी एचआइवी से संक्रमित हुईं।
एड्स की प्रारंभिक जांच रक्त के नमूने से होती है। जिस व्यक्ति के रक्त में एचआइवी पॉजिटिव पाया जाता है, वही एड्स से ग्रस्त माना जाता है। जिला अस्पताल में एचआइवी जांच की सुविधा है। यहां पॉजिटिव पाए जाने वाले मरीज को जोधपुर ई-आरटी रैफर किया जाता है, जहां सीडी-4 जांच के बाद रोगी का उपचार प्रारंभ होता है। रोगियों के लिए सरकार की तरफ से जांच से लेकर दवाइयों तक की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है। इतना ही नहीं, एचआइवी पॉजिटिव व्यक्ति के संबंध में पूर्ण गोपनीयता बरती जाती है।
जो व्यक्ति एड्स का रोगी चिह्नित होता है, उसकी रिपोर्ट में उसका नाम नहीं दिया जाता। इसके स्थान पर संबंधित व्यक्ति के जिस्म विशेषकर चेहरे की पहचान को उभारा जाता है। जिससे एड्स रोगियों की पहचान सार्वजनिक न हो और उन्हें किसी तरह की सामाजिक बदनामी का भय नहीं रहे।