जैसलमेर

रामदेवरा पहुंचते ही सजग तंत्र, पर रास्ते में पदयात्री बेबस: घटनाएं घटती हैं, लेकिन न रिपोर्ट होती है, न कार्रवाई

लोकदेवता बाबा रामदेव की समाधि के दर्शनों के लिए यों तो वर्षभर श्रद्धालुओं की आवक होती है, लेकिन वर्ष में एक बार लगने वाले भादवा मेले के दौरान 30 से 40 लाख श्रद्धालु यहां पहुंचते है।

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Jul 02, 2025
पोकरण. मेले में पहुंचते है हजारों पदयात्री। फाइल

लोकदेवता बाबा रामदेव की समाधि के दर्शनों के लिए यों तो वर्षभर श्रद्धालुओं की आवक होती है, लेकिन वर्ष में एक बार लगने वाले भादवा मेले के दौरान 30 से 40 लाख श्रद्धालु यहां पहुंचते है। इनमें से अधिकांश श्रद्धालु पदयात्रा कर आते है। जिन्हें हर समय चोरी व समाजकंटकों की वारदातों का भय बना रहता है। भादवा माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया से एकादशी तक रामदेवरा में बाबा की समाधि पर मेले का आयोजन होता है। मेले में श्रद्धालुओं की आवक श्रावण माह के शुक्ल पक्ष में शुरू हो जाती है, जो भादवा माह की पूर्णिमा तक जारी रहती है। डेढ़ माह में लाखों श्रद्धालु यहां आते है। हजारों श्रद्धालु पदयात्रा कर रामदेवरा पहुंचते है। साथ ही गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा के साथ ही राजस्थान के कई जिलों से पदयात्री संघ भी यहां आते है। इन पदयात्रियों को रात्रि पड़ाव स्थलों पर कई परेशानियों से रु-ब-रु होना पड़ता है। इनमें विशेष रूप से चोरी, नकबजनी व अन्य वारदात की आशंका बनी रहती है। हर बार मेले में ऐसी घटनाएं होती भी है। जिन पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है।

लंबा सफर, विश्राम और हो जाती है वारदात

मेले के दौरान हजारों श्रद्धालु पदयात्रा कर रामदेवरा पहुंचते है। इन पदयात्रियों को मेले में पैदल पहुंचने में एक सप्ताह से लेकर तीन सप्ताह का समय लग जाता है। इस दौरान वे सडक़ मार्गों के किनारे खाली जगहों पर रात्रिकालीन विश्राम करते है। दिन भर पैदल चलने से थके-हारे श्रद्धालुओं के आंखों में पल भर में ही गहरी नींद आ जाती है। उसी समय ताक में बैठे समाजकंटक, चोर, उठाईगिरे अपना हाथ साफ करने से नहीं चूकते।

पदयात्री बनकर हो जाते है जत्थे में शामिल

रामदेवरा आने वाले अधिकांश पदयात्री पोकरण होकर गुजरते है। पोकरण से रामदेवरा की दूरी 12 किलोमीटर ही है। ऐसे में ये पदयात्री पोकरण से पहले ही अपना पड़ाव डालकर रात्रि विश्राम करते है और तडक़े तीन-चार बजे रवाना होकर सुबह जल्दी रामदेवरा पहुंचकर दर्शन करते है। जोधपुर रोड, फलसूंड रोड आदि मार्गों पर कस्बे से दूर एकांत में ये पदयात्री अपने साजो-सामान के साथ दरियां बिछाकर सो जाते है। समाजकंटक या तो पहले से ऐसे स्थलों पर आकर छिप जाते है अथवा दिन में पदयात्रियों के जत्थे में शामिल हो जाते है। इन पड़ाव स्थलों पर न तो बिजली की व्यवस्था होती है, न ही कोई सुरक्षा की। जिसके चलते समाजकंटकों आदि से निपटना, उनकी पहचान करना और उन्हें पकडऩा श्रद्धालुओं के हाथ नहीं रहता है। ऐसे में ये समाजकंटक वारदात को अंजाम देने में सफल हो जाते है।

चक्करों से बचने को नहीं देते रिपोर्ट

रात में विश्राम स्थलों पर चोरी, नकबजनी जैसी घटनाएं होने के बाद श्रद्धालु को सुबह उठने पर जानकारी होती है। अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर श्रद्धालु इतनी हिम्मत नहीं कर पाता है कि वह अपना सामान, रुपए आदि चोरी हो जाने की शिकायत पुलिस में करें। क्योंकि मामला दर्ज होने के बाद उसे कई बार चक्कर लगाने पड़ते है। ऐसे में श्रद्धालु बिना शिकायत किए बाबा रामदेव की समाधि के दर्शनों के बाद रवाना हो जाता है।

पुलिस की निगरानी सीमित

मेले के दौरान पुलिस की ओर से पर्याप्त जाब्ता लगाया जाता है, लेकिन लाखों श्रद्धालुओं की आवक के चलते पुलिस की निगरानी रामदेवरा गांव व पोकरण कस्बे तक सीमित हो जाती है। ऐसे में समाजकंटक आबादी क्षेत्र से दूर सूनसान स्थलों पर पड़ाव डालने वाले श्रद्धालुओं को ही निशाना बनाता है। साथ ही वारदात के बाद भागने में सफल भी हो जाते है।

Published on:
02 Jul 2025 11:05 pm
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