CG Coal News: कोरबा जिले में इस निगेटिव ग्रोथ का सबसे बड़ा कारण खनन के लिए जमीन का संकट होना है। स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि खदान से प्रभावित आधा दर्जन गांव के लोग अपनी एक इंच की जमीन प्रबंधन को देने के लिए तैयार नहीं है।
CG Coal News: छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में इस निगेटिव ग्रोथ का सबसे बड़ा कारण खनन के लिए जमीन का संकट होना है। कोयला खदान का विस्तार की योजना आगे बढ़ रही है लेकिन धरातल पर यह योजना कैसे लागू होगी इसे लेकर प्रबंधन और ग्रामीणों के बीच मतभेद लगातार बढ़ता जा रहा है।
CG Coal News: स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि खदान से प्रभावित आधा दर्जन गांव के लोग अपनी एक इंच की जमीन प्रबंधन को देने के लिए तैयार नहीं है। इसका सीधा असर खनन पर पड़ रहा है। खदान के भीतर मिट्टी के फेस पर चलने वाली कई भारी-भरकम मशीनें सही तरीके से नहीं चल पा रही हैं। कई मशीनें तो कार्यस्थल पर ही खड़ी हो गई हैं।
वर्तमान में एसईसीएल की कुसमुंडा खदान का विस्तार पाली, पड़निया, खोडरी, जटराज और रिसदी की तरफ हो रहा है। प्रबंधन ने कई साल पहले इस गांव की जमीन अधिग्रहित की थी। अधिग्रहण के बाद प्रबंधन ने इस जमीन को छोड़ दिया था। इस बीच जमीन की कीमत लगातार बढ़ती गई। प्रबंधन ने अपनी जमीन पर आधिपत्य को लेकर भी लापरवाही बरती और अपने वादे को पूरा नहीं किया जो उसने ग्रामीणों के साथ किया था।
इससे स्थिति धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करती चली गई। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि जमीन अधिग्रहण के दौरान कुसमुंडा प्रबंधन की ओर से ग्रामीणों के साथ कई वादे किए गए थे। इसमें खदान से प्रभावित होने वाले गांव के खातेदारों को स्थाई नौकरी के साथ-साथ बेरोजगार युवाओं को रोजगार, जमीन के बदले मुआवजा और बसाहट सबसे प्रमुख था। इन वर्षों में कंपनी अपने वादों को पूरा नहीं कर सकी।
खदान से प्रभावित गांव के लोग आज भी अपनी जमीन और घर हटाने के बाद मुआवजे के लिए प्रबंधन का चक्कर लगा रहे हैं। अपने हक के लिए आंदोलन कर रहे हैं इससे ग्रामीणों के बीच कंपनी की नीति को लेकर गलत मैसेज जा रहा है और लोग अपनी जमीन को खाली करने के लिए तैयार नहीं हैं। हालांकि प्रबंधन की ओर से यह कोशिश की जा रही है ग्रामीणों की समस्या का समाधान किया जाए और उन्हें भरोसे में लेकर खदान विस्तार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाई जा सके, मगर प्रबंधन के लिए ग्रामीणों का भरोसा जीत पाना आसान नहीं है।
इसका बड़ा कारण प्रबंधन की नीति रही है। समय के साथ कुसमुंडा परियोजना में अफसरों का आना-जाना लगा रहा और नीतियां भी बदलती रहीं। इसका असर हुआ कि ग्रामीणों में कंपनी की नीति से भरोसा कम हुआ है और ग्रामीण अपने मुद्दों को लेकर आक्रामक रूख अपनाए हुए हैं।
जमीन की संकट का असर प्रबंधन पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। खनन के लिए जमीन की कमी है। इससे प्रबंधन के पास अब विकल्प कम होते जा रहे हैं। वर्तमान में प्रबंधन उन्हीं क्षेत्रों में कोयला खनन कर रहा है जहां की जमीन उसके आधिपत्य में है। इसका असर यह हो रहा कि खदान की गहराई लगातार बढ़ रही है। इससे खदान में दुर्घटना की आशंका भी बढ़ रही है। गहराई ज्यादा होने के कारण कोयला लेकर बाहर निकलने वाली गाड़ियों से ड्राइवरों को असुविधा हो रही है। उन्हें खदान के भीतर जाने में भी काफी सावधानी बरतने की जरूरत पड़ रही है।
पूर्व में कुसमुंडा खदान में मानसून के समय एक हादसा हुआ था। उस समय भी यह स्पष्ट हो गया था कि जिस फेस पर कंपनी काम करा रही थी वह काफी गहरा था। बारिश में इस फेस पर कोयला खनन नहीं किया जा सकता था, बावजूद इसके कंपनी यहां खनन करा रही थी जिसमें कंपनी के एक अंडर मैनेजर की जान सैलाब में चली गई थी।
कोल इंडिया की मेगा प्रोजेक्ट कुसमुंडा खदान की स्थिति उत्पादन के क्षेत्र में लगातार गिरती जा रही है। अभी तक कुसमुंडा खदान से कोयला खनन में 31 फीसदी निगेटिव ग्रोथ दर्ज किया गया है। इससे स्थानीय प्रबंधन में हड़कंप मचा हुआ है और कंपनी के मुयालय में भी मंथन शुरू हो गया है। यही कारण है कि यहां मुख्यलय से अधिकारियों का लगातार आना हो रहा है। निगेटिव ग्रोथ का असर कंपनी की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ रही है।
चालू वित्तीय वर्ष में अभी तक एसईसीएल की कुसमुंडा खदान से 20.12 मिलियन टन कोयला बाहर निकलना था, मगर अभी तक 11.22 मिलियन टन ही खनन हुआ है, जो लक्ष्य का 55.73 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की तुलना में यह 31 फीसदी कम है। गेवरा की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है।