लखनऊ

क्या पूर्वांचल में ‘तीसरी ताक़त’ बनने की तैयारी में रालोद?, समझें पूर्वी उत्तर प्रदेश का डी-एमएजेजीआर समीकरण?

कहते हैं जिसने पूर्वांचल जीत लिया, वही यूपी की सत्ता की सीढ़ी चढ़ गया। शायद इसलिए जयंत चौधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से निकल कर पूर्वांचल में पार्टी विस्तार में जुटे हैं। हाल ही में RLD ने गोरखपुर, कुशीनगर, बलिया और बस्ती जैसे जिलों में कार्यकर्ता सम्मेलन कर चुनावी रणनीति का आगाज कर दिया है। जयंत चोधरी दलित, मुस्लिम,जाट,गुर्जर और मुस्लिम समीकरण के ज़रिए भाजपा और सपा-कांग्रेस के बीच एक तीसरे विकल्प की ज़मीन भी तैयार कर रही है।

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Jul 11, 2025
जयंत चोधरी Source :- Patrika Graphic Team

लखनऊ - कहते हैं जिसने पूर्वांचल जीत लिया, वही यूपी की सत्ता की सीढ़ी चढ़ गया। शायद इसलिए जयंत चौधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से निकल कर पूर्वांचल में पार्टी विस्तार में जुटे हैं। हाल ही में RLD ने गोरखपुर, कुशीनगर, बलिया और बस्ती जैसे जिलों में कार्यकर्ता सम्मेलन कर चुनावी रणनीति का आगाज कर दिया है। जयंत चोधरी दलित, मुस्लिम,जाट,गुर्जर और मुस्लिम समीकरण के ज़रिए भाजपा और सपा-कांग्रेस के बीच एक तीसरे विकल्प की ज़मीन भी तैयार कर रही है।

जयंत चोधरी Source :- Patrika Graphic Team

उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल (RLD) अब सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पार्टी नहीं रहना चाहती। जयंत चौधरी की अगुवाई में पार्टी का संगठन पूर्वांचल में भी जड़े जमाने की तैयारी में है। पहले वाराणसी में कार्यकर्ता सम्मेलन और अब गोरखपुर-कुशीनगर की यात्रा इस दिशा में स्पष्ट संकेत हैं। सवाल यह है कि क्या रालोद पूर्वांचल की राजनीति में खुद को ‘तीसरी ताकत’ के रूप में स्थापित कर पाएगी?रालोद की यह सक्रियता केवल संगठन विस्तार नहीं, बल्कि भविष्य की एक रणनीतिक पारी की शुरुआत भी मानी जा रही है। केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनने के बाद जयंत चौधरी का यह क्षेत्रीय रुख ऐसे समय पर आया है जब उत्तर प्रदेश में भाजपा और सपा-कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। रालोद की कोशिश इन दोनों ध्रुवों के बीच अपनी ज़मीन तलाशने की है।

AJGR से D-MAJGR तक का सफर

जयंत चोधरी Source :- Patrika Graphic Team

पार्टी के अंदरूनी हलकों में इस समय एक नया सामाजिक समीकरण चर्चा में है D-MAJGR , यानी दलित, मुस्लिम, अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत। पारंपरिक तौर पर रालोद जाट-गुर्जर और आंशिक रूप से अहीर और राजपूत वोटरों पर निर्भर रही है। लेकिन पूर्वी यूपी में यह समीकरण अधूरा है। इसलिए दलितों और मुसलमानों को इस गठजोड़ में जोड़ने की कोशिश की जा रही है ताकि एक ऐसा सामाजिक आधार तैयार किया जा सके जो न सिर्फ पंचायत चुनावों में असर दिखाए, बल्कि 2027 की विधानसभा की तैयारी का भी मजबूत आधार बने।

पूर्वांचल में ध्रुवीकरण बड़ी चुनौती

पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति लंबे समय से जातीय और सामुदायिक ध्रुवीकरण के इर्द-गिर्द घूमती रही है। समाजवादी पार्टी ने यहां यमुस्लिम-यादव गठजोड़ के सहारे राजनीतिक पकड़ बनाई, वहीं भाजपा ने गैर-यादव ओबीसी और सवर्णों का सफलतापूर्वक ध्रुवीकरण किया। रालोद की रणनीति इस दोनों के बीच की खाली जगह को भरने की है।

क्या बन पाएगी तीसरी ताक़त?

रालोद पूर्वी उत्तर प्रदेश में न सिर्फ जमीनी कार्यकर्ताओं को जोड़ रही है वहीं नए सामाजिक समीकरणों को भी साध रही है। कुल मिलाकर, यदि भाजपा और सपा के बीच का ध्रुवीकरण किसी तीसरे विकल्प के लिए जगह छोड़ता है, तो रालोद उस मौके को गंवाने के मूड में नहीं दिख रही।

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