2003 और 2025 के एसआईआर की तुलना करना गलत है क्योंकि दोनों प्रक्रियाओं में आधारभूत अंतर हैं। पूर्व चुनाव अधिकारी योगेंद्र यादव के अनुसार, 2003 में मतदाता सूची में शामिल लोगों को नागरिकता का प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं थी, जबकि 2025 में ऐसा नहीं है। समय-सीमा भी अलग है - 2003 में 243 दिन लगे थे, जबकि 2025 में केवल 97 दिन हैं।
बिहार में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने की उम्मीद है। इस बीच, भारत निर्वाचन आयोग ने राज्य में मतदाताओं के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) का काम चल रहा है। 25 जून से 26 जुलाई तक यानी कि एक महीने तक बिहार में मतदाताओं के पुनरीक्षण का काम चला। इसके बाद, सारे प्रपत्र जमा हो गए।
1 अगस्त को चुनाव आयोग ने तमाम वेरिफिकेशन के बाद बिहार के लिए ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी कर दी। अब जिन लोगों का नाम मतदाता सूची में छूट गया है, वह 1 सितंबर तक दावा कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को लेकर देश भर में बवाल मचा है। विपक्ष लगातार आयोग पर भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगा रहा है।
विपक्ष का कहना है कि बिहार में मतदाता सूची के साथ छेड़छाड़ की गई है। मृत लोगों के नाम जोड़ दिए गए हैं और कई जिंदा लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं। इस बीच, चुनाव आयोग भी लगातार सफाई दे रहा है।
बता दें कि इससे पहले, साल 2003 में बिहार में एसआईआर किया गया था। कई लोग 2003 से 2025 के SIR की तुलना कर रहे हैं।
इस बीच, पूर्व चुनाव अधिकारी ने खुलकर यह कह दिया है कि 2003 से 2025 के SIR की तुलना करना पूरी तरह गलत है। इसके तीन कारण भी उन्होंने बताए हैं। तो आइये उनपर एक नजर डालें।