बॉम्बे हाई कोर्ट में सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ के भांजे राज वाकोडे की अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति पर विवाद गहराता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस अभय ओका ने इस नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी पर सवाल उठाए हैं और सीजेआई पर खुद को इससे अलग रखने का आह्वान किया है। लेख में हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति प्रक्रिया और आवश्यक योग्यताओं की भी विस्तृत जानकारी दी गई है। क्या यह नियुक्ति पारदर्शिता के सिद्धांतों का उल्लंघन है? जानिए पूरी खबर।
राज वाकोडे और 13 अन्य न्यायाधीशों ने मंगलवार को बॉम्बे हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ ली है। राज वाकोडे की नियुक्ति के साथ ही बॉम्बे हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या 82 हो गई है, जबकि स्वीकृत संख्या 94 है।
राज सीजेआई बीआर गवई के भांजे हैं। राज की नियुक्ति को लेकर अब विवाद खड़ा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस अभय ओका ने कहा कि सीजेआई गवई को खुद को इस नियुक्ति प्रक्रिया से अलग कर लेना चाहिए था।
हालांकि, ओका ने यह भी कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि सीजेआई गवई ने खुद को इस मामले से अलग किया था या नहीं।
जस्टिस अभय ओका ने कहा कि अगर किसी न्यायाधीश के रिश्तेदार का नाम हाई कोर्ट जज के लिए भेजा जाता है, तो उस न्यायाधीश को कॉलेजियम से अलग हो जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई को अपने भांजे राज वाकोडे के नाम की सिफारिश वाले कॉलेजियम से खुद को अलग कर लेना चाहिए था।
जस्टिस ओका ने कहा कि भले ही उम्मीदवार वास्तव में योग्य हो, लेकिन मुख्य न्यायाधीश को पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए अलग होना आवश्यक था।
हाई कोर्ट में जज बनने के लिए उम्मीदवार को अधिवक्ता के रूप में कम से कम 10 वर्षों का अनुभव होना चाहिए या किसी अन्य न्यायिक पद पर अनुभव होना चाहिए। उम्मीदवार को भारतीय संविधान और कानूनों का ज्ञान होना चाहिए और उन्हें न्यायिक पद के लिए उपयुक्त माना जाना चाहिए।