चीन ब्रह्मपुत्र पर बांध नहीं भारत के खिलाफ वाटर बम बना रहा है। इसके लिए जरिए वह पूर्वोत्तर भारत में जल प्रवाह को पूरी तरह रोककर सूखाड़ ला सकता है। साथ ही, मानसून सीजन में सभी बांध के फाटक खोलकर बाढ़ की स्थिति ला सकता है।
ब्रह्मपुत्र (Brahmaputra) दुनिया की लंबी नदियों में से एक है। इसकी कुल लंबाई 2900 किलोमीटर है। यह तिब्बत (Tibet) से निकलकर भारत (India) और बांग्लादेश (Bangladesh) होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। तिब्बत में इसे सांग्पो, अरुणाचल (Arunachal) में दिहांग, असम (Assam) में ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश में इसे जमुना के नाम से जाना जाता है। चीन अब तिब्बत के मेडोग काउंट के ग्रेट बेंड इलाके में बहुत बड़ा पनबिजली बांध बनाने में जुट गया है। चीन द्वारा नदी के ऊपरी हिस्से में बनाए जा रहे इस 60 गीगावाट क्षमता वाले हाइपर-डैम का नकारात्मक असर भूटान, बांग्लादेश और भारत के पूर्वोत्तर इलाके में पड़ने वाला है। भारत का पूर्वोत्तर फ्लैश फ्लड और सूखाड़ से ग्रसित हो सकता है। विशेषज्ञ इसे चीन का वाटर बम कह रहे हैं।
चीन का दशकों से भारत के पूर्वोत्तर इलाके पर नजर है। वह अरुणाचल को अपना इलाका मानता है, जबकि नागालैंड, मणिपुर में गुपचुप तरीके से उग्रवादियों को समर्थन भी करता रहा है। भारतीय सुरक्षाबलों ने उग्रवादियों से मुठभेड़ के बाद बड़ी मात्रा में चाइनीज हथियार भी बरामद किए हैं। जो समय समय पर चीनी मंशा को उजागर करते हैं। उसने ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध की परियोजना का ख्वाब बहुत पहले देख लिया था। चीनी की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने दिसंबर 2024 में विश्व का सबसे बड़ा और महत्वाकांक्षी बांध या डैम बनाने की योजना को मंजूरी दी।
विशेषज्ञों ने कहा कि बांध के निचले हिस्से में भारत और चीन की सीमा है। चीन इस पानी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है। वह इस पानी को रोककर पूर्वोत्तर भारत के असम व अरुणाचल को पानी के लिए तरसा सकता है। साथ ही, मानसून के समय बांध के फाटक खोलकर पूर्वोत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों को डूबो सकता है।
चीनी फैसले पर सबसे अधिक चिंता असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने जताई है। सरमा ने कहा कि इस बांध के कारण ब्रह्मपुत्र नदी केवल बारिश के पानी पर निर्भर हो जाएगी जिससे नदी का प्राकृतिक संतुलन और जल उपलब्धता पर गहरा असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि भारत को इस मामले में सतर्क रहना होगा और प्रभावी तरीके से कदम उठाने होंगे।
ब्रह्मपुत्र को असम की जीवनदायनी नदी माना जाता है। ब्रह्मपुत्र पर असम की खेती का एक बड़ा हिस्सा निर्भर है। यह लगभग असम के कुल भौगलिक क्षेत्र के 75 फीसदी के बराबर है। ब्रह्मपुत्र तिब्बत और अरुणाचल से होते हुए अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती है। जोकि खेती के लिए आवश्यक है। ब्रह्मपुत्र नदी असम में जैव विविधिता में भी बड़ी हिस्सेदार है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने असम के दीर्घेश्वरी मंदिर के सामने ब्रह्मपुत्र नदीं के उत्तरी तट पर मछली की एक नई प्रजाति की खोज की है। इसका नाम नेमास्पिस ब्रह्मपुत्र रखा गया है।
चीन में बांध के निर्माण से दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप माजुली के अस्तित्व पर भी संकट गहरा सकता है। माजुली पर पर्यावरण का प्रतिकूल प्रभाव दशकों से पड़ रहा है। बांध के निर्माण के बाद माजुली का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। इसका असर काजीरंगा नेशनल पार्क पर भी पड़ेगा। वहीं, अरुणाचल में ब्रह्मपुत्र पीने का पानी और खेती के लिए सबसे जरूरी है। अरुणाचल में भारत के पनबिजली योजनाएं हैं। तिब्बत में बांध बनने से उन पर भी असर पड़ेगा।
अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू ने कुछ दिनों पहले ही इस बांध को वाटर बम बताते हुए कहा- यह प्रोजेक्ट अस्तित्व के लिए खतरा है और मिलिट्री खतरे के अलावा किसी भी दूसरी समस्या से ज्यादा बड़ा मामला है। उन्होंने कहा कि चीन ने अंतरराष्ट्रीय वॉटर ट्रीटी पर साइन नहीं किया है। उसे अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के पालन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। उस पर भरोसा भी नहीं किया जा सकता है। कोई नहीं जानता है कि वे क्या कर सकते हैं।
एक रिसर्च के मुताबिक नदी प्रणाली के किनारे रहने वाले समुदायों ने सदियों से नदी के आकार और परिवर्तन के साथ जीना सीख लिया था, लेकिन चीन, भारत और भूटान द्वारा विशाल जलविद्युत बांधों जैसे हस्तक्षेपों के कारण, समुदाय नदी प्रणाली के बारे में अपने पारंपरिक ज्ञान का सार्थक उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि आपदाओं की गति और घटनाएं बढ़ गई हैं। तिब्बत के ऊपरी इलाकों के समुदायों के साथ-साथ भारत, भूटान और बांग्लादेश के निचले इलाकों के समुदायों को भी विशाल जलविद्युत बांधों की छाया में रहना पड़ रहा है, जिसका उनकी पारंपरिक भूमि और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
भारत और बांग्लादेश के निचले इलाकों में ब्रह्मपुत्र का बारहमासी प्रवाह नदी के प्रवाह पर निर्भर करता है। ग्रेट बेंड पर चीन द्वारा नियोजित विशाल जलविद्युत बांध के संचालन के लिए मुख्य जलस्रोतों को बनाए रखने के लिए उस बारहमासी प्रवाह को अवरुद्ध करना होगा। इससे सतही जल स्तर और नदी बेसिन के मानसून पैटर्न प्रभावित होंगे।