1993 में ओबीसी में क्रीमी लेयर तय करने के लिए अधिकतम सालाना आय की सीमा तय करते हुए नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट की व्यवस्था की। सरकार ने 1 लाख रुपए से ज्यादा की सालाना आमदनी वाला ओबीसी परिवार क्रीमी लेयर घोषित किया था।
मंडल कमीशन की सिफारिश के आधार पर तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार ने 1991 में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण दिया था। इंदिरा साहनी ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 1991 में दिए फैसले में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण के फैसले का समर्थन किया, लेकिन उसने कहा कि ओबीसी की पहचान के लिए जाति को पिछड़ेपन का आधार बनाया जा सकता है।
लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया था कि ओबीसी में क्रीमी लेयर को आरक्षण नहीं दिया जाएगा। यह फैसला 1992 में लागू हो गया। कुछ राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट की बात यह कहते हुए नहीं मानी की उनके यहां ओबीसी में क्रीमी लेयर नहीं है। इसके बाद 1999 में क्रीमी लेयर का मुद्दा फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अदालत ने अपना फैसला बरकरार रखा।
इस पर सरकार ने 1993 में ओबीसी में क्रीमी लेयर तय करने के लिए अधिकतम सालाना आय की सीमा तय करते हुए नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट की व्यवस्था की। सरकार ने 1 लाख रुपए से ज्यादा की सालाना आमदनी वाला ओबीसी परिवार क्रीमी लेयर घोषित किया था। इसे 2004 में ढाई लाख, 2008 में साढ़े चार लाख, 2013 में छह लाख और 2017 में आठ लाख रुपए कर दिया गया।