Lateral Entry: लेटरल एंट्री को लेकर मचे सियासी बवाल के बीच चिराग पासवान को अब जनता दल यूनाइटेड का साथ मिला है। जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन सिंह ने लेटरल एंट्री पर असहमति जताई है।
Lateral Entry: एनडीए सरकार में नीतीश कुमार की जदयू और चिराग पासवान की लोजपा (र) महत्वपूर्ण सहयोगी दल है। दोनों दलों ने लेटरल एंट्री के मुद्दे पर मोदी सरकार का विरोध किया है। लेटरल एंट्री को लेकर मचे सियासी बवाल के बीच चिराग पासवान को अब जनता दल यूनाइटेड का साथ मिला है। जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन सिंह ने लेटरल एंट्री पर असहमति जताई है। उन्होंने कहा कि लेटरल एंट्री अगर केंद्र सरकार जमीन पर उतारना चाहती है, तो इसके लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि आरक्षण के प्रावधानों पर किसी भी प्रकार की आंच ना आए, लेकिन अगर ऐसा होता है, तो इस अवधारणा को जमीन पर उतारने से बचना चाहिए।
राजीव रंजन सिंह ने कहा, “निसंदेह लेटरल एंट्री का उद्देश्य बेहतर है, जो लोग भी सरकारी व निजी प्रतिष्ठानों में उत्कृष्ट सेवाएं दे रहे हैं, उन्हें भी केंद्र सरकार में अपनी सेवाएं देने का मौका लेटरल एंट्री के जरिए मिल सकता है, लेकिन संघ लोक सेवा आयोग परीक्षा को ध्यान में रखते हुए यह लाया जा रहा है, तो मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि लेटरल एंट्री में भी आरक्षण के प्रावधानों का पालन किया जाना चाहिए।” वहीं, जब उनसे इस पर जदयू के रुख के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने दो टूक कहा, “हम लोग इस पर पहले से ही अपनी असहमति जता चुके हैं। हमें पूरा विश्वास है कि केंद्र सरकार हमारी आपत्तियों को जरूर ध्यान में रखेगी।”
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा था, ”मैं और मेरी पूरी पार्टी स्पष्ट राय रखती है कि सरकारी को कोई भी नियुक्तियां, उसमें आरक्षण के प्रावधानों को ध्यान में रखकर करना चाहिए। निजी क्षेत्रों में ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है। ऐसे में कोई भी सरकारी नियुक्ति होती है, चाहे किसी भी स्तर पर हो, उसमें आरक्षण के प्रावधानों को ध्यान रखना चाहिए। इसमें नहीं रखा गया है, यह हमारे लिए चिंता का विषय है। मैं खुद सरकार का हिस्सा हूं और मैं इसे सरकार के समक्ष रखूंगा। हां… मेरी पार्टी इससे कतई सहमत नहीं है।”
लेटरल एंट्री बिना UPSC परीक्षा के विभिन्न सरकारी मंत्रालय में सीधे सचिव और उपसचिव जैसे पदों पर पदस्थ होने का मौका अभ्यर्थियों को देता है। इसे लेकर विवाद गहराया हुआ है। आलोचकों का कहना है कि इससे आरक्षण के हितों पर कुठाराघात पहुंचेगा, तो वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि अगर इस अवधारणा को हम जमीन पर उतारना चाहते है, तो इसके लिए हमें लेटरल एंट्री में भी आरक्षण की व्यवस्था करनी होगी, ताकि दलित, ओबीसी और आदिवासी समुदाय के लोगों के हितों पर प्रहार न हो।