Lok Sabha Elections 2024 : रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग लोकसभा क्षेत्र से महायुति ने काफी खींचतान के बाद केन्द्रीय मंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को प्रत्याशी बनाया है। महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) के घटक शिव सेना (यूबीटी) की ओर से विनायक राउत को हैट्रिक की उम्मीद से मैदान में उतारा है। रत्नागिरी से रतन दवे की विशेष रिपोर्ट ...
Lok Sabha Elections 2024 : रेत के समंदर बाड़मेर-जैसलमेर से अरब सागर का असली समुद्र रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग। रेगिस्तान की खेजड़ी से निकलकर आम के बगीचे। एकदम अलग अनुभव। फिर सड़क किनारे हापुस, केसर और दूसरे आम के पेड़ और इसी तरह काजू के पेड़ों की कतारें भी हैरान कर रही थीं। अरब सागर को छूते हुए रत्नागिरी का इलाका प्राकृतिक सुन्दरता की खान है तो यहां की मिट्टी माथे को लगाने पर गौरव होता है। यह शिवाजी महाराज की धरती है। सिंधुदुर्ग को महाराजा शिवाजी ने 1664 में बनवाया था। करीब 50 एकड़ में बने किले में 42 बुर्ज हैं। किले की दीवारें 912 मीटर (30 फीट) से अधिक ऊंची हैं। महाराष्ट्र का कोंकण इलाके का यह क्षेत्र समुद्र के किनारे पर बसा है। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने भी 13वां साल यहां बिताया था। स्वतंत्रता आंदोलन में वीर सावरकर और म्यांमार के अंतिम राजा थिबू को कैद कर यहां रखा गया था। इसके बाद यह क्षेत्र महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक की जन्मस्थली रही।
महायुति ने काफी खींचतान के बाद केन्द्रीय मंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को प्रत्याशी बनाया है। नारायण राणे के बेटे नीलेश राणे कांग्रेस से 2009 में यहां से सांसद रहे हैं। 2014 और 2019 में नीलेश को लगातार दो बार विनायक राउत ने शिकस्त दे दी। तीसरी बार बेटे को उतारने की बजाय अब नाक का सवाल बनाकर खुद नारायण राणे मैदान में उतरे हैं। उनके सामने महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) के घटक शिव सेना (यूबीटी) की ओर से विनायक राउत को हैट्रिक की उम्मीद से मैदान में उतारा है। नारायण राणे का प्रभाव सिंधुदुर्ग में है और विनायक राउत का प्रभाव रत्नागिरी में है।
राज्य सरकार में मंत्री उदय सामंत की यहां अच्छी पकड़ है। उदय चाहते थे कि उनके भाई किरण सामंत को टिकट मिल जाए। शिवसेना के उद्धव गुट ने लगातार दो बार सांसद रहे राउत को पहली पसंद बनाया और टिकट मिला। उलझन यहां पर भी महाराष्ट्र की खिचड़ी पॉलिटिक्स की है। राउत पहले दो बार सांसद भाजपा के सहयोग से बने हैं, लेकिन अब वे भाजपा के खिलाफ हो गए हैं और एमवीए के टिकट पर मैदान में हैं।
2005 में उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह करने पर बालासाहेब ने राणे को शिवसेना से निष्कासित किया था। राणे बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। 2017 में कांग्रेस छोड़ी और महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष की स्थापना की, जिसका बाद में भाजपा में विलय हुआ। राज्यसभा सदस्य और केन्द्रीय मंत्री बनाए गए। राणे के लिए अब अपना रुतबा और दबदबा कायम रखने के लिए यह सीट नाक का सवाल है। वहीं उद्धव ठाकरे राणे को हराने के लिए जी-जान से जुटे हैं।
वक्त को सलाम है, पता नहीं कब बदल जाए। कहा जाता है हाथ में घड़ी हो सकती है, लेकिन वक्त हमारा हर समय एक जैसा नहीं होता है। सिंधुदुर्ग में एक कृषि भवन बना हुआ है। शरद पवार जब कृषि मंत्री थे, तब यह बना। इसका नाम शरद कृषि भवन है। भवन पर एनसीपी का चिह्न घड़ी भी लगा हुआ है। अब वक्त बदल गया है और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के पास घड़ी का निशान नहीं रहा, अब चुनाव चिह्न 'तुरही बजाता हुआ आदमी' हो गया है। यहां लगी घड़ी देखकर ग्रामीण कहते हैं, 'घड़ी रह गई, वक्त बदल गया।'
सिंधुदुर्ग के कलक्टर परिसर में चाय की थड़ी चला रही श्रद्धा दड़वी मिली जो ग्राम पंचायत सदस्य है। वो कहती है कि यहां पर खेल विद्यालय होना चाहिए। एक महिला की यह मांग वाकई चौंका गई। श्रद्धा कहती है यहां स्वीमिंग, साइकलिंग, शूटर के अच्छे खिलाड़ी हैं। उनको खेल स्कूल मिले तो प्रतिभाएं आगे बढ़े। कोच मिलना चाहिए। वे शिक्षण की बेहतर व्यवस्था के लिए भी पैरवी करती हैं, वो शिक्षा के स्तर को कम आंक रही हैं। सिंधुदुर्ग में ही मिले दिलीप पालव कहते हैं कि आदमी मर जाए, तब तक यहां इलाज नहीं मिलता है। गोवा जाना पड़ता है। अस्पताल में सुविधाएं नहीं है। ट्रेनें यहां से गुजरती खूब हैं, लेकिन फुल रहती हैं। यहां दो पुलिसकर्मी मिले, जिनके लिए ऑफिसियल बात करना मुनासिब नहीं था, वे बोले- महम्मदवाड़ी और तिलाकी दो डेम है। यह वो इलाका है जहां नदियों व बरसात का पानी रोक दिया जाए तो सूखे की समस्या का हल हो जाए, लेकिन वाटर हार्वेस्टिंग तक का प्लान नहीं बना है। तकलीफ रजनीश नाइक को इस बात की है कि पड़ोस के गोवा में पर्यटन का इतना विकास हुआ है तो फिर महाराष्ट्र सरकार रत्नागिरी- सिंधुदुर्ग को उस दर्जे तक क्यों नहीं ले जा पा रहे हैं। समुद्र, समुद्र के किनारे और प्राकृतिक सौंदर्य में कहीं कमी नहीं है, बस व्यवस्थित पर्यटन प्लान नहीं बन रहा।
रत्नागिरी से पहले कांकड़वाड़ी के आम के बगीचे में मिले सुरेश नवाथे। 1200 पेटी आम बेच चुके हैं औैर अभी बगीचे में हापुस की बहार है। वो कहते है यहां बगीचों में नेपाल, झारखण्ड और बिहार के मजदूर आते हैं। यहां के लोकल लोग मुम्बई पलायन कर रहे हैं। खेत-बगीचे में काम कम करते हैं। पहाड़ पर चढऩे की जिंदगी से परहेज करते है। वो कहते हैं कि आम का इंश्योरेंस होने से हमें तकलीफ नहीं है। यहां मजदूर मिल जाए तो खेतों में खुशहाली है।