आधुनिक युद्ध में आसमान पर नियंत्रण बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, और एयर डिफेंस सिस्टम किसी भी देश की रक्षा प्रणाली का एक अत्यावश्यक हिस्सा होते हैं। एक अच्छा एयर डिफेंस सिस्टम दुश्मन के हवाई हमलों से सुरक्षा प्रदान करता है।
How Air Defence Systems work: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (POK) में स्थित 9 आतंकी ठिकानों पर हमले किए। इसके जवाब में पाकिस्तान ने बुधवार की रात को भारत के 15 शहरों पर हमले की कोशिश की, लेकिन भारत के मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम ने इन सभी हमलों को नाकाम कर दिया।
इसके बाद गुरुवार सुबह भारत ने पाकिस्तान के कई स्थानों पर एयर डिफेंस सिस्टम को निशाना बनाया। भारतीय सेना ने एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा, "विश्वसनीय जानकारी के अनुसार, लाहौर में एक एयर डिफेंस सिस्टम को निष्क्रिय कर दिया गया है। भारतीय जवाबी कार्रवाई उसी क्षेत्र में और उतनी ही तीव्रता से की गई है, जितनी पाकिस्तान द्वारा की गई थी।"
आधुनिक युद्ध में आसमान पर नियंत्रण बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, और एयर डिफेंस सिस्टम किसी भी देश की रक्षा प्रणाली का एक अत्यावश्यक हिस्सा होते हैं। एक अच्छा एयर डिफेंस सिस्टम दुश्मन के हवाई हमलों से सुरक्षा प्रदान करता है और दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम को निष्क्रिय कर देता है, जिससे उन पर हवाई हमले का खतरा बढ़ जाता है। ऐसा ही कुछ भारत के एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने बुधवार को किया।
एयर डिफेंस सिस्टम का मुख्य उद्देश्य आसमान से आने वाले खतरों को निष्क्रिय करना है, चाहे वह दुश्मन के लड़ाकू विमान हों, ड्रोन हों या मिसाइलें। यह रडार नेटवर्क, कंट्रोल सेंटर, डिफेंसिव फाइटर एयरक्राफ्ट, आर्टिलरी और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम की मदद से काम करता है।
किसी भी एयर डिफेंस सिस्टम को सफल तब माना जाता है जब वह खतरे को समय से पहले पहचान ले। यह रडार नेटवर्क की मदद से होता है। हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में जैसे अगर दुश्मन इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) दागता है, तो सैटेलाइट का भी उपयोग किया जाता है।
रडार एक ट्रांसमीटर के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक गैलेक्टिक रेडियो वेव्स को वातावरण में भेजता है। ये वेव्स जब दुश्मन के विमान या मिसाइल से टकराती हैं, तो वे परावर्तित होकर वापस लौट आती हैं। एक रिसीवर इन लौटती तरंगों को पकड़ता है और उनके आधार पर यह विश्लेषण करता है कि खतरे की दूरी कितनी है, वह किस गति से आगे बढ़ रहा है, और वह किस प्रकार का है (उदाहरण: फाइटर जेट, क्रूज़ मिसाइल या ड्रोन)।
किसी एयर डिफेंस सिस्टम की प्रभावशीलता केवल खतरे का पता लगाने तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह इस बात पर भी निर्भर करती है कि वह उस खतरे पर कितनी लगातार और सटीक निगरानी रख सकता है। यह रडार के साथ-साथ कुछ अन्य सेंसर जैसे इंफ्रारेड कैमरे, लेज़र रेंजफाइंडर की मदद से होता है।
अक्सर एयर डिफेंस सिस्टम को केवल एक नहीं, बल्कि कई तेज़ी से आने वाले हवाई खतरों से एक साथ निपटना पड़ता है। यह स्थिति और जटिल हो जाती है जब दुश्मन के ड्रोन, मिसाइलें और लड़ाकू विमान एक साथ हमला करते हैं, और उसी क्षेत्र में अन्य देशों के विमान या नागरिक विमान भी मौजूद होते हैं। ऐसे में यदि ट्रैकिंग सटीक नहीं हो, तो गलती हो सकती है और दुश्मन की जगह किसी अन्य विमान या नागरिक विमान को निशाना बनाया जा सकता है। इसलिए, लक्ष्य को ठीक से पहचानना और उसकी गति, ऊंचाई, दिशा और प्रकृति पर लगातार निगरानी रखना प्रभावी जवाबी कार्रवाई के लिए अत्यंत आवश्यक होता है।
जब खतरे का पता लगा लिया गया हो और उस पर सटीक निगरानी रखी जा रही हो, तब अगला और निर्णायक कदम उसे निष्क्रिय करना होता है। इस चरण में यह तय करना होता है कि खतरे की प्रकृति के आधार पर कौन-सी जवाबी कार्रवाई की जाएगी। उदाहरण के लिए, क्या वह एक क्रूज़ मिसाइल है, एक फाइटर जेट है या ड्रोन है? इसका पता लगाना बेहद ज़रूरी होता है। इसके अलावा, उसकी गति, दूरी, ऊंचाई और संभावित मार्ग जैसी जानकारी भी जरूरी होती है। इन तथ्यों के आधार पर एयर डिफेंस सिस्टम यह निर्णय लेता है कि ड्रोन, जेट या मिसाइल को निष्क्रिय करने के लिए किस सिस्टम का उपयोग किया जाए।