नीतीश सरकार का दावा है कि यह विस्तार विकास परियोजनाओं को गति देने के लिए है, लेकिन विपक्ष इसे सत्ता में बने रहने और वोट बैंक को साधने की रणनीति मान रहा है।
बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने गुरुवार, को अपने मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सभी मंत्रियों को विभाग आवंटित कर दिए हैं। यह कदम राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियों के बीच उठाया गया है, जो करीब 8-9 महीने बाद होने वाले हैं। मंत्रिमंडल अब अपनी पूर्ण क्षमता (36 सदस्य) तक पहुंच गई है, जिसमें सात नए मंत्री, सभी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से, शामिल किए गए हैं।
हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन से एक विभाग वापस ले लिया गया है। पहले उनके पास सूचना प्रौद्योगिकी और लघु जल संसाधन विभाग थे, लेकिन अब उनके पास केवल लघु जल संसाधन विभाग रह गया है। संतोष सुमन हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) से हैं और महादलित वर्ग से संबंधित हैं।
इस विस्तार के साथ मंत्रिमंडल की संरचना में बदलाव हुआ है, और माना जा रहा है कि अगले 8-9 महीनों में 50,000 करोड़ रुपये से अधिक की योजनाओं को धरातल पर लाया जाएगा। इनमें दक्षिण बिहार की 30,000 करोड़ रुपये की 120 योजनाएं और उत्तर बिहार की 20,000 करोड़ रुपये की 187 योजनाएं शामिल हैं, जिन्हें पहले ही कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है।
बिहार की राजनीति में जाति एक निर्णायक कारक बनी हुई है, और नीतीश मंत्रिमंडल के विस्तार में भी इसकी गहरी छाप दिखाई देती है। मंत्रिमंडल के 36 सदस्यों में जातीय संतुलन बनाए रखने की कोशिश की गई है, क्योंकि राज्य में आगामी चुनावों में यह मुद्दा महत्वपूर्ण होगा। वर्तमान मंत्रिमंडल का जातीय बंटवारा इस प्रकार है:
यह वितरण बिहार में 2023 की जातिगणना के आधार पर तैयार किया गया है, जिसमें ईबीसी (36%), ओबीसी (27.12%), अनुसूचित जातियां (19.65%), और सवर्ण (15.52%) की आबादी का अनुपात सामने आया था। हालांकि, मंत्रिमंडल में सवर्णों की हिस्सेदारी (31%) उनकी आबादी (15.52%) से कहीं अधिक है, जबकि ईबीसी की हिस्सेदारी (19%) उनकी आबादी (36%) से काफी कम है। यह असंतुलन राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया है, खासकर तेजस्वी यादव की ओर से, जो लगातार "जिसकी जितनी संख्या, उसकी उतनी हिस्सेदारी" का नारा बुलंद कर रहे हैं।
बिहार में 8-9 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, और नीतीश मंत्रिमंडल का यह विस्तार एनडीए (बीजेपी और जेडी(यू)) की चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। बीजेपी ने सात नए मंत्रियों को शामिल कर अपनी ताकत बढ़ाई है, जो सवर्ण, ओबीसी, और ईबीसी समुदायों से हैं, ताकि हर वर्ग को साधा जा सके। बीजेपी के पास अब 21 मंत्री हैं, जबकि जेडी(यू) के पास 13, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (एचएएम) से एक, और एक स्वतंत्र विधायक सुमित सिंह भी मंत्रिमंडल में हैं।
इस बीच, तेजस्वी यादव और राजद (राष्ट्रीय जनता दल) बीजेपी पर जातिगणना और संविधान में आरक्षण बढ़ाने जैसे मुद्दों पर हमलावर हैं। 2023 की बिहार जातिगणना के मुताबिक, नीतीश सरकार ने ओबीसी और ईबीसी के लिए आरक्षण 50% से बढ़ाकर 65% करने का प्रस्ताव पास किया था, लेकिन इस पर अभी तक केंद्रीय मंजूरी नहीं मिली है। तेजस्वी का दावा है कि नीतीश और बीजेपी इस मुद्दे पर गंभीर नहीं हैं, और वे इसे चुनावी मुद्दा बनाना चाहते हैं।