Operation Lotus: डीके शिवकुमार ने कहा कि कुछ लोग सत्ता साझा करने को तैयार नहीं हैं। उनका यह बयान दिल्ली से लेकर बेंगलुरु तक गुंजने लगा है। क्या सितंबर के बाद कर्नाटक में बड़े सियासी उलटफेर की आशंका तो नहीं है। कुछ दिनों पहले कांग्रेस के कद्दावर मंत्री ने भी कहा था कि पार्टी में कई पावर सेंटर हो गए हैं।
Operation Lotus: कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार (DK Shivkumar) का दर्द एक बार फिर छलका है। दिल्ली के एक कार्यक्रम में उन्होंने इसकी टिस जग जाहिर की है। कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया (CM Siddaramaiah) का नाम लिए बिना ही उन्होंने कांग्रेस (Congress) के बड़े नेताओं के सामने खुलकर कहा, 'कुछ लोग सत्ता साझा करने को तैयार नहीं हैं', लेकिन अब यह सवाल दिल्ली से लेकर बेंगलुरु तक पूछा जाने लगा है कि क्या ऑपरेशन लोटस की तैयारी भी चल रही है। DK और उनके समर्थकों द्वारा दिए जा रहे बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
साल 2008 में कर्नाटक में बीजेपी सत्ता में आई थी, लेकिन बहुमत के आंकड़े से वह तीन सीट दूर थी। उसे कुछ विधायकों का समर्थन मिला, लेकिन स्थिर सरकार चलाने के लिए उसे और विधायक चाहिए थे। इसके बाद ऑपरेशन लोटस शुरू हुआ।
एक बाद एक करके कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर के विधायकों ने इस्तीफा देना शुरू किया। इस तरह कुल 8 विधायकों ने इस्तीफा दिया। उपचुनाव में बीजेपी को पांच सीटे मिली। इससे बीजेपी की येदुरप्पा को स्थिर सरकार के लिए जरूरी ताकत मिल गई।
डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच सियासी टसल नई नहीं है। यह टसल 2023 में सिद्धारमैया के सीएम बनते ही शुरू हो गई थी। कई बार कर्नाटक कांग्रेस की कलह खुलकर सामने आई। शिवकुमार के समर्थक इकबाल ने कहा था कि सभी जानते हैं कि सत्ता में आने से पहले कर्नाटक में कांग्रेस की क्या ताकत थी। कांग्रेस की जीत के लिए शिवकुमार ने संघर्ष किया। उनकी रणनीति इतिहास में दर्ज हो गई। इकबाल ने कहा था कि सही समय आने पर हाईकमान निर्णय लेगी।
वहीं, कुछ दिनों पहले जब कर्नाटक की सियासत में जमकर खींचतान जारी था, तब सीएम सिद्धारमैया के बेटे यतींद्र ने कहा कि सीएम बदलने की बातें सिर्फ अटकलबाजी है। यतींद्र ने कहा था कि जब पार्टी हाईकमान ने साल 2023 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद सरकार बनाने का फैसला लिया तब सिद्धारमैया को सीएम बनाने की बात हुई थी। सिद्धारमैया अपना कार्यकाल पूरा करेंगे।
सियासी गलियारों में चर्चा है कि जब 2023 में कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई थी। तब कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने डीके शिवकुमार को सीएम बनाने का प्रोमिस किया था। चर्चा थी कि डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया 2.5-2.5 साल तक राज्य के सीएम बनेंगे। पहले ढाई साल सिद्धरामैया के हाथ में राज्य की बागडोर होगी, जबकि आखिरी ढाई साल डीके शिवकुमार राज्य के मुख्यमंत्री होंगे। ढाई साल वाले फॉर्मूले की समय सीमा अक्टूबर में खत्म होने वाली है।
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र ने कुछ दिनों पहले दावा किया था कि सिद्धारमैया ने कांग्रेस विधायकों का भरोसा खो दिया है। डीके शिवकुमार को 100 विधायकों का समर्थन है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के इस बात को हवा कांग्रेस के मंत्री केएन राजन्ना ने दी। राजन्ना ने कहा कि कर्नाटक कांग्रेस में बहुत सारे पावर सेंटर बन चुके हैं। सितंबर महीने के बाद बड़ा बदलाव हो सकता है।
साल 2018 में जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में वनवास काटकर लौटी तो सबको यही लगा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश के सीएम बनाए जाएंगे। वह पार्टी के लिए लगातार रैलियां और सभाएं कर रहे थे, लेकिन सत्ता में वापसी के बाद कमलनाथ को सीएम बनाया गया। कहा गया कि कमलनाथ ने चुनाव लड़ने के लिए जरूरी संसाधन जुटाए थे। साल 2020 में पहले सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया फिर एमपी कांग्रेस के 22 विधायकों ने पद से इस्तीफा दिया। इससे कमलनाथ की सरकार गिर गई।
2018 में जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी। उस दौरान कांग्रेस हाईकमान ने भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री और टीएस सिंह देव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। यहां भी कहा गया कि कांग्रेस हाईकमान ने 2.5-2.5 साल के लिए मुख्यमंत्री बनाने का फॉर्मूला सेट किया है। साल 2021 में यहां भी खींचतान शुरू हो गई। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान भी शक्ति प्रदर्शन की बात सामने आई। हालांकि, इस मामले को कांग्रेस हाईकमान ने आसानी से सुलझा लिया।
साल 2020 में तत्कालीन राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपनी सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी। वह कुछ विधायकों के साथ हरियाणा के मानेसर होटल में जा बैठे थे। उस समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थे। गहलोत ने किसी तरह डैमेज कंट्रोल किया। कहा जाता है कि संकट के इस समय में कांग्रेस सांसद व पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने अहम भूमिका निभाई थी।