SC Notice to EC: सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद अंडरट्रायल कैदियों के वोटिंग अधिकार पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है।
चुनाव में वोटिंग (Voting Rights) का अधिकार हर नागरिक का मौलिक अधिकार है, लेकिन जेल में बंद कैदियों को इसका अधिकार नहीं है। इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग (Election Commission of India) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मामला लगभग 4.5 लाख अंडरट्रायल कैदियों (Undertrial Prisoners) के वोटिंग अधिकारों से जुड़ा है, जो जेलों में बंद हैं लेकिन अभी दोषी साबित नहीं हुए।
जनहित याचिका (PIL) पंजाब के पटियाला निवासी सुनीता शर्मा ने दायर की है। याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) 1951 की धारा 62(5) को चुनौती दी गई है। इस धारा के तहत जेल में बंद कोई भी व्यक्ति चाहे वह सजा काट रहा हो या ट्रायल का इंतजार कर रहा हो चुनाव में वोट नहीं दे सकता। याचिका में कहा गया है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 326 (वयस्क मताधिकार) का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि अंडरट्रायल कैदी निर्दोष माने जाते हैं, जब तक उनकी दोष प्रूफ न हो जाए। फिर भी उन्हें वोटिंग से वंचित करना गलत है। खासकर उन कैदियों को, जो चुनावी अपराध या भ्रष्टाचार जैसे मामलों में दोषी नहीं हैं। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि जेलों में वोटिंग स्टेशन स्थापित करने के निर्देश दिए जाएं। बाहर के निर्वाचन क्षेत्रों में बंद कैदियों के लिए डाक मतपत्र की व्यवस्था हो।
कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र के विधि एवं न्याय मंत्रालय और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया। बेंच ने दोनों पक्षों से जल्द जवाब मांगा है। वकील प्रशांत भूषण ने याचिका का पक्ष रखा और कहा कि यह वोटिंग पर पूर्ण प्रतिबंध संवैधानिक अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने मामले को गंभीर बताते हुए आगे की सुनवाई की तारीख तय कर दी है।
भारत की जेलों में करीब 4.5 लाख अंडरट्रायल कैदी हैं, जो कुल कैदियों का बड़ा हिस्सा हैं। अगर कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में आया, तो यह लोकतंत्र को मजबूत करने वाला कदम होगा।