सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मनमोहन ने कहा है कि यदि भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनना है तो उसे अपने कानूनी और नियामकीय ढांचे की पूरी तरह पुनर्कल्पना करनी होगी। उन्होंने कहा, ‘जो लोग देश के लिए संपत्ति अर्जित करते हैं उन्हें आयकर अधिकारी या जीएसटी अधिकारी इस तरह देखते हैं जैसे कि वे […]
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मनमोहन ने कहा है कि यदि भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनना है तो उसे अपने कानूनी और नियामकीय ढांचे की पूरी तरह पुनर्कल्पना करनी होगी। उन्होंने कहा, 'जो लोग देश के लिए संपत्ति अर्जित करते हैं उन्हें आयकर अधिकारी या जीएसटी अधिकारी इस तरह देखते हैं जैसे कि वे चोर हों, यह मानसिकता बदलनी होगी।'
'2047 तक विकसित भारत के लिए भारत के कानूनी आधार की पुनर्कल्पना' विषय पर ‘न्याय निर्माण 2025’ संवाद में उन्होंने कहा कि मौजूदा कानून ईंट-पत्थर की अर्थव्यवस्था के लिए बने हैं जबकि भारत डिजिटल दौर में प्रवेश कर चुका है। उन्होंने 500 पन्नों वाले आयकर कानून और जटिल प्रावधानों की आलोचना करते हुए कहा कि आम व्यक्ति उन्हें समझ ही नहीं सकता।
जस्टिस मनमोहन ने डेटा संप्रभुता, डिजिटल अधिकार, जलवायु न्याय और हर्जाने जैसे मुद्दों पर नए कानूनों की तात्कालिक जरूरत बताई। उन्होंने यह भी कहा कि टैक्स और जीएसटी विवादों में मध्यस्थता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, लेकिन सरकारी अविश्वास और ईमानदार अधिकारियों को जांच का डर जैसे मसले इसमें बाधा हैं।
उन्होंने अमरीका की प्रणाली का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां करदाता फोन पर सवालों का जवाब देकर विवाद निपटा लेते हैं, जबकि भारत में यह कल्पना भी कठिन है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पंकज मित्थल ने भी चेताया कि संसद में बिना बहस या विमर्श के बिल पारित होने से अच्छे कानून नहीं बन सकते। उन्होंने हर बिंदु पर गहन चर्चा की जरूरत पर जोर दिया।