अपर सत्र न्यायालय में रेलवे में फर्जी नियुक्ति प्रमाण पत्र देने वाले आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने जांच में महत्वपूर्ण साक्ष्य नहीं जुटाए। आरोपियों ने नियुक्ति पत्र पर उपयोग सीलें कहां पर बनवाई थी और उनका उपयोग कहां-कहां किया। लैपटॉप को नदी में फेंकना बताया गया है। आरोपी को […]
अपर सत्र न्यायालय में रेलवे में फर्जी नियुक्ति प्रमाण पत्र देने वाले आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने जांच में महत्वपूर्ण साक्ष्य नहीं जुटाए। आरोपियों ने नियुक्ति पत्र पर उपयोग सीलें कहां पर बनवाई थी और उनका उपयोग कहां-कहां किया। लैपटॉप को नदी में फेंकना बताया गया है। आरोपी को खुद साक्ष्य लेकर थाने में उपस्थित बताया गया है। इससे संदेह उत्पन्न होता है।
मामला वर्ष 2019 से 2023 के बीच का है। जब आरोपी नरेश बंजारा, धर्मेन्द्र नायक, अंकित प्रजापति ने बेरोजगार युवाओं को रेलवे में टीटी और अन्य पदों पर नौकरी दिलाने का झांसा दिया। प्रत्येक युवा से करीब 1.40 लाख रुपए वसूल किए गए। युवाओं को विश्वास दिलाने के लिए आरोपियों ने फर्जी आई-कार्ड, नियुक्ति पत्र और मेडिकल प्रमाणपत्र तैयार किए। इतना ही नहीं, उन्हें दिल्ली और ग्वालियर में फर्जी ट्रेनिंग और परीक्षा जैसी गतिविधियों में शामिल कराकर भ्रमित किया गया। 23 जून 2023 को ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर नकली ट्रेनिंग के दौरान आरोपियों को पकड़ लिया। पुलिस ने नरेश, धर्मेंद्र, अंकित के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 471 के तहत प्रकरण दर्ज किया। कोर्ट ने साक्ष्य व गवाही को देखने के बाद पाया कि आरोपियों ने सरकारी स्तर पर किसी वास्तविक नियुक्ति में युवाओं को धोखा दिया हो। फर्जी दस्तावेज तैयार होने के बावजूद यह स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला कि किसी वैध भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित किया गया। धोखाधड़ी के गंभीर आरोप को साबित करने के लिए ठोस साक्ष्य की आवश्यकता होती है। कोर्ट ने आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया।