ओपिनियन

सम्पादकीय : कागजी साबित हो रही बाघों की निगरानी

बाघों के लापता होने, या फिर अज्ञात कारणों से मौत की आए दिन सामने आने वाली खबरें चिंता बढ़ाने वाली हैं।

2 min read
Aug 26, 2025

बाघों के संरक्षण को लेकर भारी-भरकम बजट खर्च होने के बावजूद इन्हें बचाने व जंगलों में निगरानी का काम कागजी ही साबित हो रहा है। यह सच है कि पिछले एक दशक में देश में बाघों की संख्या बढ़ी है। इसके बावजूद बाघों के लापता होने, या फिर अज्ञात कारणों से मौत की आए दिन सामने आने वाली खबरें चिंता बढ़ाने वाली हैं। राजस्थान में ही 13 बाघ लापता बताए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश में 8 माह में 40 बाघ शावकों की मौत के मामलों की जांच जारी है। इसी तरह से महाराष्ट्र में 30, असम में 12 व समूचे देश की बात करें तो अब तक 115 बाघों की मौत हो चुकी है। इसी सप्ताह सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में तवा के बैक वाटर में एक बाघ का शव मिला। उसके पंजा काटे जाने की पुष्टि हुई। इसी महीने भोपाल के पास केरवा और कोलार के जंगलों से निकला बाघ शहर के करीब सडक़ों के पास देखा गया।
बाघों के लापता होने का कारण वन विभाग की तरफ से इनका क्षेत्र बदलना रहा है। इसकी वजह शिकारियों का भय भी है। शिकारियों से बचने के लिए बाघ आबादी की ओर रुख करने लगते हैं। बालाघाट में बाघ के शिकार के मामले में दो वनकर्मियों पर इनाम घोषित होना बताता है कि बाघ संरक्षण के नाम पर घोर लापरवाही हुई है। कैमरे, कॉलर आइडी और न जाने किन-किन संसाधनों पर लाखों रुपए खर्च के बावजूद वन विभाग का लंबा-चौड़ा अमला बाघों की निगरानी में असफल साबित हो रहा हो तो इसे क्या कहेंंगे? मध्यप्रदेश में तो प्रधान मुख्य वन संरक्षक को अपने मातहतों को चेतावनी पत्र जारी कर कहना पड़ा है कि रिजर्व और जंगलों में बाघों की मौत का कारण पता नहीं चलना गंभीर चूक है। सच्चाई ये है कि चाहे राजस्थान हो, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र या कर्नाटक सभी जगह रिजर्व और जंगलों में मानव गतिविधियां बढ़ रही हैं। कोई इसे कितना भी छिपाए, लेकिन अभयारण्यों और जंगलों में मानवीय दखल बढ़ रहा है। ऐसी घटनाओं को छिपाने में राजनीतिक दखल भी जानवरों की मौतों के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है। एक तरह से मिलीभगत का खेल नजर आता है जिसमें बाघों की मौत व लापता होने के मामलों को कोई संज्ञान में नहीं ले रहा।
एक संकट और है, जंगल की सीमा से सटे गांवों में मवेशियों को बचाने के लिए ग्रामीण बाड़बंदी में करंट तक प्रवाहित कर रहे हैं। शिकारियों की मौजूदगी से घबराकर जब जानवर जंगलों से आबादी का रुख करते हैं तो कभी-कभी वह करंट लगे तारों की जद में भी आ रहे हैं। बाघों की मौत के पीछे एक ही कारण है वो है मानव। आज तो ऐसी स्थितियां निर्मित हो चुकी हैं कि हर एक बाघ की मौत पर उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। हम जंगल कम करते जा रहे हैं और इसका नुकसान जंगली जानवरों को हो रहा है। हम जंगलों और जंगली जानवरों दोनों को ही नहीं गंवा सकते। बाघों के संरक्षण के लिए गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है।

Published on:
26 Aug 2025 08:10 pm
Also Read
View All

अगली खबर