एक तरफ प्लास्टिक से मुक्ति का अभियान चलाया जाता है, दूसरी तरफ प्लास्टिक उद्योग को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए कथनी-करनी का यह अंतर समाप्त करना होगा और प्लास्टिक कचरे के निस्तारण की ठोस योजना बनाकर उस पर अमल करना होगा। साथ ही प्लास्टिक का विकल्प तैयार करने के शोध को प्रोत्साहित करना होगा।
प्लास्टिक प्रदूषण कितना घातक सिद्ध हो रहा है, अब यह बात छिपी हुई नहीं है। यह जमीन ही नहीं, समुद्र को भी प्रदूषित कर रहा है। माइक्रोप्लास्टिक के रूप में जो नया खतरा सामने आया है, उससे वैज्ञानिक भी चिंतित नजर आ रहे हैं। रक्त, फेफड़े, यकृत, मस्तिष्क ही नहीं गर्भ तक माइक्रोप्लास्टिक पहुंच गया है। जब बड़े पैमाने पर प्लास्टिक प्रदूषण फैला हुआ है तो दूसरे जीव भी कैसे सुरक्षित रह सकते हैं। इसलिए हाथियों को प्लास्टिक की वजह से हो रहे नुकसान की खबरों पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हाथियों के आवागमन के गलियारों तक प्लास्टिक की पहुंच इंसानी गतिविधियों के चलते ही हुई होगी या फिर नदी-नालों के जरिए प्लास्टिक उन तक पहुंचा होगा। देश में करीब 150 हाथी गलियारे हैं, जाहिर है वे भी प्लास्टिक की पहुंच से अछूते नहीं रहे। इसलिए हाथियों के पेट में भी बड़ी मात्रा में प्लास्टिक जमा होने के मामले सामने आ रहे हैं।
एक तरह से प्लास्टिक सर्वव्यापी हो गया है, जिससे खतरे की गंभीरता का पता चलता है। इस खतरे का एक पहलू यह भी है कि भारत प्लास्टिक प्रदूषण के मामले में दुनिया में पहले नंबर पर हैं। नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया था कि उच्च आय वाले देशों में प्लास्टिक कचरा उत्पादन दर अधिक है, लेकिन वहां प्लास्टिक के नियंत्रित निपटान की व्यवस्था है। इसलिए वहां प्लास्टिक प्रदूषण कम है। भारत इस मोर्चे में बहुत पीछे है। प्लास्टिक प्रदूषण जिस तेजी से बढ़ रहा है, उससे पूरी पृथ्वी को ही खतरा पैदा हो गया है। यही वजह है कि प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करने और प्लास्टिक कचरे के निस्तारण पर जोर दिया जा रहा है। इस वर्ष 5 जून को मनाए जा रहे अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस की थीम भी प्लास्टिक से जुड़ी हुई है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने विश्व पर्यावरण दिवस से पूर्व, 'एक राष्ट्र, एक मिशन: प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करें' अभियान भी शुरू कर दिया है। यह अभियान प्लास्टिक प्रदूषण के खतरों के बारे में जागरूकता पैदा करने और पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को अपनाने को प्रोत्साहन देने पर केंद्रित रहेगा।
प्लास्टिक से मुक्ति के लिए अभियान चलते रहते हैं, लेकिन इनका खास असर नजर नहीं आता। आम जन अब भी प्लास्टिक से पैदा हो रहे खतरे को समझ नहीं पा रहा। असल में प्लास्टिक अपने विभिन्न रूपों में लोगों की जीवनशैली में घुलमिल गया है। सुविधाजनक, सस्ता और आकर्षक होने की वजह से प्लास्टिक हर वर्ग को लुभाता है। अब तो इमारतों की साज-सज्जा में भी प्लास्टिक का खूब इस्तेमाल हो रहा है। एक तरफ प्लास्टिक से मुक्ति का अभियान चलाया जाता है, दूसरी तरफ प्लास्टिक उद्योग को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए कथनी-करनी का यह अंतर समाप्त करना होगा और प्लास्टिक कचरे के निस्तारण की ठोस योजना बनाकर उस पर अमल करना होगा। साथ ही प्लास्टिक का विकल्प तैयार करने के शोध को प्रोत्साहित करना होगा।