शिक्षा विभाग ‘जियो टैगिंग’ और दूसरे गैर-शैक्षणिक कार्यों में ही उलझा हुआ है
कल्याणकारी योजनाओं का सरकारें खूब ढिंढोरा पीटती है। लेकिन इन योजनाओं का फायदा संबंधित तक उचित समय पर पहुंचता है या नहीं इसकी परवाह शायद कोई नहीं करता। राज्य के सरकारी स्कूलों में बरसों से बच्चों को नि:शुल्क पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध कराने की योजना का भी ऐसा ही हश्र हो रहा है। राजस्थान में शिक्षा सत्र शुरू हुए डेढ़ महीने से ज्यादा बीत चुका है, फिर भी कक्षा 1 से 6 तक की किताबें और वर्कबुक स्कूलों में नहीं पहुंची हैं। सरकारी स्कूलों में तो इनको नि:शुल्क दिया जाता है। चिंताजनक पहलू यह है कि कई स्कूलों में कक्षा 5 तक की एक भी पाठ्यपुस्तक नहीं पहुंची। कहीं कक्षा 6 की पुस्तकें नदारद हैं। शिविरा पंचांग के अनुसार सितंबर में ही प्रथम टेस्ट होने हैं लेकिन शिक्षकों के सामने संकट यह है कि बिना किताबें और वर्कबुक वे टेस्ट तक का कोर्स पूरा कैसे कराएं?
सरकार और विभागीय अधिकारियों का दावा है कि किताबें ऑनलाइन उपलब्ध हैं, स्कूलों में प्रिंटर हैं, इसलिए पढ़ाई प्रभावित नहीं हो रही। जबकि स्थिति इसके उलट है। ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में न तो पर्याप्त प्रिंटर हैं, न ही निर्बाध इंटरनेट सुविधा। और मान भी लिया जाए कि शिक्षक पोर्टल से डाउनलोड कर लें, तो बिना वर्कबुक के बच्चे अभ्यास कैसे करेंगे? शिक्षा विभाग के लिए बच्चों की किताबें समय पर पहुंचाना, उनका ठहराव सुनिश्चित करना और स्कूल भवनों की सुरक्षा देखना सबसे पहला काम होना चाहिए। हकीकत यह है कि विभाग ‘जियो टैगिंग’ और गैर-शैक्षिक कार्यों में उलझा हुआ है।
सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे वैसे भी संसाधनों से वंचित होते हैं। निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की तरह उनके पास अतिरिक्त किताबें, गाइड या ऑनलाइन साधन उपलब्ध नहीं होते। ऐसे में पाठ्यपुस्तकें ही उनका एकमात्र सहारा हैं। किताबें और वर्कबुक समय पर उपलब्ध नहीं कराना भविष्य के साथ खिलवाड़ है। शिक्षा विभाग को इस पर मंथन करना होगा। किताबें नहीं पहुंचाने के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि किताबें और वर्कबुक बच्चों की संख्या के अनुसार स्कूलों तक समय पर पहुंचे।
- आशीष जोशी: ashish.joshi@epatrika.com