परिवहन विभाग को इसे रोकने के लिए ठोस व प्रभावी कदम उठाने होंगे
सड़कों पर फर्राटे भरते वाहन यदि बिना फिटनेस के चल रहे हों तो इन्हें 'चलते-फिरते यमदूत' की संज्ञा दी जा सकती है। राजस्थान में खटारा वाहन आए दिन सड़क हादसों का सबब बनते रहे हैं। एक माह में ही चार हजार से ज्यादा वाहनों की फिटनेस जांच हो जाए तो साफ लगता है कि जांच प्रक्रिया कागजों में ही चल रही थी।
राजधानी जयपुर के अंऑटोमेटेड टेस्टिंग स्टेशन पर फिटनेस सर्टिफिकेट के नाम पर चल रहा फर्जीवाड़ा हमारे परिवहन तंत्र की उस अनियमितता को उजागर करता है, जिसे अब तक 'तकनीक' और 'ऑनलाइन मॉनिटरिंग' के 'हाई-फाई' सिस्टम की आड़ में छिपा दिया गया था।
सेंटर पर जैसे रेवड़ी की तरह फिटनेस सर्टिफिकेट बांटे जा रहे हैं, वह न सिर्फ कानून की खुली अवहेलना है, बल्कि सड़क पर आम लोगों की जान से खिलवाड़ भी है। जांच प्रक्रिया में गड़बड़झाले का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि जीपीएस लोकेशन दिखाने के नाम पर गाड़ियों को सेंटर बुलाया जाता है, लेकिन आधुनिक मशीनों पर टेस्ट करने के बजाय पार्किंग में ही फोटो खींचकर सर्टिफिकेट थमा दिया जाता है।
स्पष्ट शुल्क निर्धारित होने के बावजूद सेंटर पर खुलेआम लूट चल रही है। किशनगढ़ के ऑटोमेटेड स्टेशन पर तीन महीने पहले फर्जीवाड़ा उजागर हुआ था और उसकी आइडी बंद कर दी गई। लेकिन अब वही खेल जयपुर में भी पकडा गया है। क्या यह महज संयोग है या पूरी व्यवस्था किसी 'सिस्टमेटिक स्कैम' को संरक्षण दे रही है?
फिटनेस सर्टिफिकेट किसी कागजी औपचारिकता का हिस्सा नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करने का माध्यम है कि सड़क पर दौड रही गाडी जनता के लिए खतरा न बने। परिवहन विभाग को अब दिखावे की कार्रवाई नहीं, बल्कि ठोस, कठोर और पारदर्शी कदम उठाने होंगे। हर ऑटोमेटेड टेस्टिंग स्टेशन का गहन ऑडिट हो, हर वीडियो रिकॉर्ड का मिलान हो और दोषी अधिकारियों को बचाने की मानसिकता त्याग कर सीधे निलंबन और मुकदमे की कार्रवाई की जाए।