यह समझ से परे है कि 'बांध सुरक्षा विधेयक' अस्तित्व में होने के बावजूद इन बांधों की मरम्मत पर अब तक ध्यान क्यों नहीं दिया गया।
- प्रमोद भार्गव, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक
देश में बड़े बांधों की सुरक्षा को लेकर गंभीर स्थिति सामने आई है। संसद के चालू सत्र में जलशक्ति राज्य मंत्री राजभूषण चौधरी ने राज्यसभा में बताया कि देशभर में 216 बांध ऐसे हैं, जिनमें गंभीर खामियां हो गई हैं और जिनकी तत्काल मरम्मत होना जरूरी है। इन बांधों को दूसरी श्रेणी में रखा गया है। इसका अर्थ है कि बांध में बड़ी संरचनात्मक या तकनीकी कमी है, जिसे नजरअंदाज करना भविष्य में बड़े खतरे को आमंत्रण देना होगा?
सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में 50 ऐसे बांध पाए गए हैं, जिनकी तत्काल मरम्मत जरूरी है। इसके बाद मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में 24-24 बांध, तमिलनाडु में 19, तेलंगाना में 18, उत्तरप्रदेश में 12, झारखंड में 10, केरल में 9, आंध्रप्रदेश में 7 और गुजरात तथा मेघालय में छह-छह बांध क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, जिनमें तत्काल सुधार जरूरी है। यह समझ से परे है कि 'बांध सुरक्षा विधेयक' अस्तित्व में होने के बावजूद इन बांधों की मरम्मत पर अब तक ध्यान क्यों नहीं दिया गया। बांधों की मरम्मत के लिए समय रहते भारत सरकार ने देशभर के बांधों को सुरक्षित बनाए रखने की दृष्टि से 10,211 करोड़ रुपए का बजट भी आवंटित किया हुआ है। यह धन बांध पुनर्वास और सुधार कार्यक्रम (डीआरआइपी) के अंतर्गत दिया है। इस राशि से दो चरणों में बांधों की मरम्मत करने के प्रावधान हैं। भारत बांध संख्या के लिहाज से दुनिया में तीसरे स्थान पर है। देश में कुल बांध 5,745 हैं। इनमें से संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने 1115 बांधों की हालत खस्ता बताई है। चीन पहले और अमरीका दूसरे स्थान पर है। देश में 973 बांधों की उम्र 50 से 100 वर्ष के बीच है। 973 यानी 56 फीसदी ऐसे बांध हैं, जिनकी आयु 25 से 50 वर्ष हैं। भारत में बांधों की मरम्मत अप्रेल 2021 से लेकर 2031 तक पूरी होनी है। दरअसल बांध सुरक्षा विधेयक-2018 पारित कर दिए जाने के बाद से ही यह उम्मीद थी कि जिन बांधों की उम्र 26 से 100 वर्ष की है उनकी कालांतर में मरम्मत की जाएगी। कई बांध इतनी जर्जर अवस्था में आ गए हैं कि बांध की दीवारों, मोरियों और द्वारों से निरंतर पानी रिसता रहता है। इस नजरिए से इस विधेयक का उद्देश्य बांधों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत और संस्थागत कार्ययोजना उपलब्ध कराना है।
इस कानून के मुताबिक, प्रत्येक राज्य में स्थित बांधों की सुरक्षा के लिए एनडीएसए स्थापित किया जाएगा। एक राज्य के स्वामित्व वाले बांध, जो किसी अन्य राज्य में या केंद्रीय लोक सेवा उपक्रमों (सीपीएसयू) के अंतर्गत आने वाले बांध या वे बांध जो दो या दो से अधिक राज्यों में फैले हैं, सभी एनडीएसए के अधिकार क्षेत्र में होंगे। इसी कारण तमिलनाडु जैसे राज्यों की ओर से विधेयक का विरोध किया गया था। क्योंकि यह राज्य केरल में कई बांधों का प्रबंधन करता है। मुल्ला पेरियार बांध इनमें से एक है। विरोधी राज्यों को शंका थी कि यह विधेयक उनकी शक्ति कमजोर करेगा। 2014 में तमिलनाडु एवं केरल सर्वोच्च न्यायालय भी गए थे। तमिलनाडु अपने यहां बांधों की जल भंडारण क्षमता में वृद्धि करना चाहता था, जबकि केरल ने सुरक्षा का हवाला देते हुए विरोध किया था। अब जो बांध दो या दो से अधिक राज्यों की आर्थिक मदद से निर्माणाधीन होने के कारण विवादग्रस्त हैं, उनके समाधान का रास्ता भी खुल गया है। भविष्य में यदि नदी जोड़ो अभियान जोर पकड़ता है तो बांध और नहरों के निर्माण से लेकर दो या इससे अधिक राज्यों में जल-बंटवारे को लेकर जो विवाद उत्पन्न होते हैं, उन्हें निपटाने में सुगमता होगी।