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podcast शरीर ही ब्रह्माण्ड : स्त्री की दिव्यता

Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: स्त्री पूरी उम्र स्थूल और सूक्ष्म में साथ-साथ जीती है। पिता-पति-पुत्र के जीव भाव को पोषित करती रहती है। यही उसकी दिव्यता है। उसके सारे कर्म ब्रह्म को समर्पित रहते हैं। उसके पास चार शस्त्र होते हैं—श्रद्धा, स्नेह, वात्सल्य और प्रेम। प्रेम उसका श्रेष्ठतम धन है। वही उसके आदान-प्रदान का माध्यम भी है। शेष तीनों स्थूल देह साक्षी हैं। उसका प्रेम ब्रह्म की दोनों विद्याओं में उसे प्रवीण करता है। लक्ष्मी पृथ्वी है—अन्न ब्रह्म से पोषण करती है। शरीर ही ब्रह्माण्ड शृंखला में सुनें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख- स्त्री की दिव्यता

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Oct 25, 2024

Gulab Kothari Article शरीर ही ब्रह्माण्ड: "शरीर स्वयं में ब्रह्माण्ड है। वही ढांचा, वही सब नियम कायदे। जिस प्रकार पंच महाभूतों से, अधिदैव और अध्यात्म से ब्रह्माण्ड बनता है, वही स्वरूप हमारे शरीर का है। भीतर के बड़े आकाश में भिन्न-भिन्न पिण्ड तो हैं ही, अनन्तानन्त कोशिकाएं भी हैं। इन्हीं सूक्ष्म आत्माओं से निर्मित हमारा शरीर है जो बाहर से ठोस दिखाई पड़ता है। भीतर कोशिकाओं का मधुमक्खियों के छत्ते की तरह निर्मित संघटक स्वरूप है। ये कोशिकाएं सभी स्वतंत्र आत्माएं होती हैं।"

पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की बहुचर्चित आलेखमाला है - शरीर ही ब्रह्माण्ड। इसमें विभिन्न बिंदुओं/विषयों की आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्याख्या प्रस्तुत की जाती है। गुलाब कोठारी को वैदिक अध्ययन में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। उन्हें 2002 में नीदरलैन्ड के इन्टर्कल्चर विश्वविद्यालय ने फिलोसोफी में डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया था। उन्हें 2011 में उनकी पुस्तक मैं ही राधा, मैं ही कृष्ण के लिए मूर्ति देवी पुरस्कार और वर्ष 2009 में राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान से सम्मानित किया गया था। 'शरीर ही ब्रह्माण्ड' शृंखला में प्रकाशित विशेष लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें नीचे दिए लिंक्स पर

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Updated on:
25 Oct 2024 09:15 pm
Published on:
25 Oct 2024 05:28 pm
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