सुखवीर सिंह (लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं)
इंजीनियर्स दिवस (15 सितंबर) केवल सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जयंती नहीं, बल्कि यह उस दूरदर्शी सोच को याद करने और विचारने का दिन है जिसने एक गरीब उपनिवेश भारत को आज तकनीकी उन्नति के पथ पर अग्रसर राष्ट्र बनाया है। वर्तमान समय में, हमारे इंजीनियर भारत को नए अवसरों और चुनौतियों के बीच संतुलन साधते हुए नए आयाम रच रहे हैं। आइए देखते हैं उनकी कुछ ठोस उपलब्धियां, बड़ी परियोजनाएं और उन अवसरों की एक झलक जिन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है।
वर्तमान उपलब्धियां : आंकड़ों की ताकत
भारत ने इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में जनवरी 2025 तक देश की क्षमता लगभग 217.62 गीगावॉट तक पहुंच चुकी है, जिसमें सौर और पवन ऊर्जा की सबसे बड़ी भूमिका है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में अकेले 29.52 गीगावॉट की नई क्षमता जोड़ी गई, जो पिछले वर्षों की तुलना में एक बड़ी छलांग है। इसके साथ ही, देश की कुल बिजली उत्पादन क्षमता में नॉन-फॉसिल ईंधन स्रोतों का हिस्सा जून 2025 तक 51.1 प्रतिशत तक पहुंच चुका है, जो वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप है। बुनियादी ढांचे की बात करें तो भारतमाला परियोजना देश की सड़क और राजमार्ग नेटवर्क को नई गति दे रही है। फेज-1 के तहत 34,800 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का लक्ष्य तय किया गया था, जिसमें से लगभग 20770 किलोमीटर का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। इसी तरह, डिजिटल हाईवे पहल राजमार्गों के साथ फाइबर-ऑप्टिक केबल बिछाने का मार्ग प्रशस्त कर रही है, ताकि इंटरनेट आधारित सेवाएं गांव-गांव तक पहुंच सकें और डिजिटल इंडिया का सपना साकार हो। इसी दौरान, भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम भी तेजी से मजबूत हो रहा है। वर्ष 2025 में ही 11 नए यूनिकॉर्न बने, जिससे देश में यूनिकॉर्न की कुल संख्या बढ़कर 73 हो गई है। ये नए उद्यम फिनटेक, हेल्थटेक, एग्रीटेक और तकनीकी उत्पादों के क्षेत्र में न केवल नवाचार का नेतृत्व कर रहे हैं बल्कि वैश्विक निवेशकों का ध्यान भी आकर्षित कर रहे हैं। इसके अलावा, भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने जलवायु वादों को भी मजबूती से आगे बढ़ाया है। 'पंचामृत' प्रतिज्ञाओं के अंतर्गत भारत ने 2030 तक 500 गीगावॉट नॉन-फॉसिल ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को पाने के लिए सरकार ने नीति सुधार, निजी निवेश को बढ़ावा और हरित प्रौद्योगिकियों जैसे ग्रीन हाइड्रोजन और हाइब्रिड ऊर्जा परियोजनाओं पर विशेष जोर दिया है। यह स्पष्ट करता है कि भारत न केवल अपने नागरिकों के लिए, बल्कि वैश्विक समुदाय के लिए भी सतत विकास और ऊर्जा सुरक्षा का भरोसेमंद साझेदार बन रहा है।
नए अवसर एवं भविष्य के आयाम
भारत के सामने इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक नए अवसर उभर रहे हैं। सबसे पहले, ऊर्जा संक्रमण की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा रहा है। देश का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक नॉन-फॉसिल ऊर्जा स्रोतों की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 500 गीगावॉट तक पहुंचे। यह महत्वाकांक्षी प्रयास न केवल निवेश और तकनीक विकास को प्रोत्साहन देगा, बल्कि ग्रिड सुधार, ऊर्जा भंडारण और हरित-हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में भी नवाचार की नई लहर पैदा करेगा। साथ ही, सौर छतों और ऑफ-ग्रिड सौर प्रणालियों का तेजी से विस्तार ग्रामीण और दूरदराज इलाकों तक बिजली पहुंचाने में मदद करेगा। इसके साथ ही, डिजिटल अवसंरचना भारत के विकास का अगला बड़ा आधार बन रही है। राजमार्गों पर फाइबर-ऑप्टिक नेटवर्क बिछाने की पहल और डिजिटल हाईवे जैसी योजनाएं शिक्षा, स्वास्थ्य और सरकारी सेवाओं को और अधिक सुलभ बना रही हैं। नई प्रौद्योगिकियां- 5जी/6जी, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आइओटी), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ), मशीन लर्निंग- इंजीनियरों और तकनीकी विशेषज्ञों के लिए असंख्य करियर अवसरों के द्वार खोल रही हैं। उधर, औद्योगिक विनिर्माण और स्वदेशी उत्पादन की दिशा में भी उल्लेखनीय बदलाव हो रहे हैं। मेक इन इंडिया अभियान और डिजाइन फॉर मैन्युफैक्चरिंग जैसे उपायों से सौर पैनल, पवन टर्बाइन, बैटरियां और इलेक्ट्रिक वाहनों के पुर्जों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है। इससे न केवल आत्मनिर्भरता को बल मिलेगा, बल्कि कृषि, खनन और उद्योग से जुड़े राज्यों में स्थानीय उत्पादन इकाइयों के जरिए रोजगार भी तेजी से बढ़ेगा और एक मजबूत मूल्य शृंखला देश के भीतर ही विकसित होगी। इन सबके समानांतर, संशोधन, अनुसंधान और शिक्षा की भूमिका भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो गई है। देश के विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों में ऊर्जा अनुसंधान, पर्यावरणीय तकनीकी अध्ययन, सतत विकास और स्मार्ट शहरों की योजना जैसे विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है। साथ ही, सरकार और निजी क्षेत्र द्वारा स्थापित 'सेंटर फॉर एक्सीलेंस' प्रयोगशालाएं नवाचार और प्रायोगिक शोध को नई दिशा दे रही हैं। यह पहल आने वाले वर्षों में भारत को न केवल आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में भी मजबूती से खड़ा करेगी।
बड़ी परियोजनाएं और उनके जटिल पहलू
भारत के विकास की गति को तेज करने में मेगा परियोजनाओं की अहम भूमिका है। इनमें वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर विशेष उल्लेखनीय है। लगभग 1,506 किलोमीटर लंबे इस माल ढुलाई रेल मार्ग से न केवल माल परिवहन की गति बढ़ेगी बल्कि यात्री ट्रेनों पर पडऩे वाला ट्रैफिक दबाव भी कम होगा। इसी तरह, भारतमाला परियोजना देश के सड़क और राजमार्ग नेटवर्क को नई दिशा दे रही है। इसके अंतर्गत नए कॉरिडोर, लॉजिस्टिक पार्क और बॉर्डर कनेक्टिविटी विकसित की जा रही है, जो क्षेत्रीय समेकन को बढ़ावा देंगे और घरेलू व विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनेंगे। इस प्रकार की परियोजनाएं केवल अवसंरचना नहीं, बल्कि आर्थिक एकीकरण और औद्योगिक विकास की आधारशिला हैं।
चुनौतियां- आगे बढऩे के लिए बाधाएं
हालांकि इन परियोजनाओं के साथ कई जटिल चुनौतियां भी जुड़ी हैं। सबसे प्रमुख है ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी। कई राज्यों में पर्याप्त ट्रांसमिशन लाइनें उपलब्ध न होने के कारण नवीकरणीय ऊर्जा को बड़े उपभोक्ता क्षेत्रों तक पहुंचाने में कठिनाई हो रही है। इसके अलावा, जमीन अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंजूरी और स्थानीय प्रतिरोध जैसी प्रक्रियाएं अक्सर परियोजनाओं को समय पर पूरा होने से रोक देती हैं। शिक्षा और प्रशिक्षण की गुणवत्ता भी एक बड़ी बाधा है। इंजीनियरिंग कॉलेजों में अधिकांश विद्यार्थियों को अभी भी केवल सैद्धांतिक ज्ञान मिलता है, जबकि वास्तविक प्रगति के लिए व्यावहारिक परियोजनाओं, उद्योग अनुभव और इनोवेशन माइंडसेट की आवश्यकता है। साथ ही, वित्तपोषण और लागत प्रबंधन भी बड़ी चुनौती है। हरित ऊर्जा और अत्याधुनिक तकनीकों में शुरुआती निवेश अत्यधिक होता है जबकि निवेशक तभी आगे बढ़ते हैं जब उन्हें नीतियों में दीर्घकालिक स्थिरता और स्पष्टता दिखाई देती है। इन बाधाओं के बावजूद, यदि नीति-निर्माता, उद्योग जगत और शैक्षणिक संस्थान मिलकर समाधान तलाशें, तो ये परियोजनाएं न केवल भारत की आर्थिक रीढ़ को मजबूत करेंगी बल्कि देश को वैश्विक तकनीकी नेतृत्व की ओर भी अग्रसर करेंगी।
आगे की रणनीति
इंजीनियर्स दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि भविष्य की दिशा केवल प्रौद्योगिकी निर्माण तक सीमित न रहकर सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन को भी साधे। इसके लिए जरूरी है कि नीति-निर्माता स्थिर और दीर्घकालिक नीतियां बनाएं, जो निवेशकों का भरोसा जीतें और हरित ऊर्जा, डिजिटल अवसंरचना, स्मार्ट सिटी तथा घरेलू विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में तेजी से पूंजी प्रवाह सुनिश्चित करें। शिक्षा संस्थानों को भी अपनी भूमिका पुनर्परिभाषित करनी होगी। उद्योग-संबद्ध पाठ्यक्रम, प्रयोगशाला-आधारित अध्ययन और सहयोगी शोध के माध्यम से विद्यार्थियों को तकनीकी दक्षता ही नहीं, बल्कि नवाचार और समस्या-समाधान की दृष्टि से भी सक्षम बनाना होगा। साथ ही, स्थानीय स्तर पर ऐसी परियोजनाएं विकसित हों जो गांव और शहर दोनों के लोगों को समान रूप से लाभांवित करें, रोजगार के अवसर सृजित करें और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखें। नवाचार-इकोसिस्टम को भी मजबूत करना आवश्यक है- स्टार्टअप्स, इनक्यूबेटर, शोध प्रयोगशालाएं और 'लिविंग लैब्स' जैसी पहलें इंजीनियरों को प्रयोग और समाधान तलाशने की स्वतंत्रता देंगी। आज भारत न केवल तकनीकी आधार पर आगे बढ़ रहा है बल्कि उसने यह साबित कर दिया है कि इंजीनियरों की सक्रिय भागीदारी से हर चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है। नवाचार, नीति-संयुक्त दृष्टिकोण, सामाजिक जिम्मेदारी और गुणवत्ता-उन्मुख शिक्षा यदि साथ आएं, तो आने वाले वर्षों में भारत न केवल विश्व स्तर पर अभिनव अभियंताओं का केंद्र बनेगा बल्कि ऐसी तकनीकों और परियोजनाओं का जन्मस्थान भी होगा, जो मानवता के लिए स्थायी और व्यापक लाभ प्रदान करेंगी। इंजीनियर्स दिवस पर यह आवश्यक है कि हम केवल अतीत की सफलताओं पर गर्व तक सीमित न रहें, बल्कि भविष्य के लिए ठोस रणनीतियां बनाएं। आखिरकार, तकनीक का असली मापदंड केवल निर्माण नहीं है, बल्कि मानव जीवन की गुणवत्ता और हमारी पृथ्वी की सुरक्षा है।