Krishna Janmashtami 2025: भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी कुछ बातों को लेकर समाज में भ्रान्तियां हैं। क्या गलतफहमियां हैं और उनकी सही व्याख्या क्या है, इस बारे में हम वेदाचार्य, सहायकाचार्य डॉ.सुधाकर कुमार पाण्डेय के आलेख के जरिए समझिए।
Janmashtami: भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shrikrishna) केवल एक महापुरुष ही नहीं, बल्कि सत्य, धर्म और प्रेम के शाश्वत प्रतीक हैं। फिर भी, समय के साथ उनके जीवन, लीलाओं और शिक्षाओं के कई पहलुओं को लेकर अनेक भ्रांतियां फैल गई हैं। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर में वेदाचार्य, सहायकाचार्य डॉ.सुधाकर कुमार पाण्डेय (Dr. Sudhakar Kumar Pandey) की व्याख्या के जरिये श्रीकृष्ण से जुड़ी गलतफहमियों को सही अर्थों में समझने की कोशिश करेंगे और उनके संदेशों का सही अर्थ जानेंगे।
5 Myths about Lord Krishna and the reality: श्रीकृष्ण के जीवन में रासलीला को अक्सर गलत तरीके से समझा जाता है। कुछ लोग इसे स्त्रियों के प्रति आकर्षण के रूप में देखते हैं, जबकि सच यह है कि गोपियों के साथ उनका संबंध आत्मा और परमात्मा के प्रेम का प्रतीक है। भागवत महापुराण में वर्णित रासलीला सांसारिक प्रेम नहीं, बल्कि भक्ति के चरम का अनुभव है, जिसमें भक्त अपने अहंकार, लोभ और भय को त्यागकर ईश्वर में लीन हो जाता है। गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम निःस्वार्थ, निष्काम और पूर्ण समर्पण का उदाहरण है। इस प्रेम में शरीर का आकर्षण नहीं, बल्कि आत्मा का मिलन है। इसलिए कृष्ण को स्त्री-लोलुप कहना न केवल उनके दिव्य स्वरूप का अपमान है, बल्कि रासलीला के गहरे आध्यात्मिक संदेश की अनदेखी भी है। हमें रासलीला को एक दिव्य संवाद और प्रेम के सर्वोच्च रूप के रूप में समझना चाहिए।
Krishna Makhan Chor: कृष्ण का "माखन चोर" रूप भारतीय संस्कृति में अत्यंत लोकप्रिय है। बाल्यकाल में वे ग्वाल-बालों संग मटकी से माखन चुराते थे। सामन्य दृष्टि से यह शरारत लग सकता है, लेकिन इसके पीछे गहरा संदेश छिपा है। माखन, जो दूध-दही से बनता है, ग्रामीण जीवन का सबसे पौष्टिक और महत्वपूर्ण भोजन था। कृष्ण की यह लीला बताती है कि जीवन में पोषण और संपन्नता का महत्व है, और इसे बांटने में आनंद है। भागवत में यह भी वर्णन है कि वे यह माखन केवल अपने लिए नहीं, बल्कि सबके साथ बांटते थे- यह साझा करने और समानता का संदेश देता है। साथ ही, माखन ‘हृदय की निर्मलता’ का भी प्रतीक है, जिसे कृष्ण अपने भक्तों के हृदय से ‘चुराते’ हैं। इस प्रकार, माखन चोरी मात्र शरारत नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संकेत है।
Lord Krishna role in Mahabharta: महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण पर आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने छल से विजय दिलाई। परंतु सत्य यह है कि युद्ध के प्रारंभ में उन्होंने सभी नियमों का पालन किया। लेकिन जब कौरवों ने अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसाकर निर्दयतापूर्वक मार डाला, तब धर्म के नियम पहले ही टूट चुके थे। श्रीकृष्ण का स्पष्ट मत था-“जब अधर्म बढ़ जाए, तब धर्म की रक्षा के लिएjj आवश्यक कदम उठाना ही धर्म है।” भीष्म, द्रोण, कर्ण जैसे योद्धाओं के अंत के पीछे उनकी रणनीति धर्म की पुनर्स्थापना के लिए थी, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए। इस दृष्टि से देखा जाए तो कृष्ण का युद्ध में हस्तक्षेप छल नहीं, बल्कि धर्म की विजय का साधन था।
Radhey Krishna Love: राधा-कृष्ण का प्रेम भारतीय भक्ति परंपरा का सबसे लोकप्रिय विषय है, लेकिन रोचक तथ्य यह है कि भागवत पुराण में ‘राधा’ का नाम सीधे उल्लेखित नहीं है। राधा का चरित्र बाद की साहित्यिक और लोक परंपरा में अधिक उभरा- विशेषकर गीत गोविंद और ब्रज की लोककथाओं में। राधा, कृष्ण के प्रेम की आध्यात्मिक चरम सीमा का प्रतीक हैं, जहां प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं, केवल पूर्ण समर्पण है। भक्ति आंदोलन के संतों, विशेषकर चैतन्य महाप्रभु, ने राधा-कृष्ण को भक्ति के सर्वोच्च रूप के रूप में प्रस्तुत किया। चाहे ऐतिहासिक रूप से राधा का अस्तित्व प्रमाणित हो या न हो, उनका स्थान भक्त-हृदय में अमिट है, और यह प्रेम शाश्वत आध्यात्मिक प्रेरणा देता है।
16008 Gopis of Krishna's Explanation: अक्सर कहा जाता है कि श्रीकृष्ण की 16,008 पत्नियां थीं, जिससे कई भ्रांतियां उत्पन्न होती हैं। वास्तविकता यह है कि उनकी केवल 8 मुख्य रानियां थीं- रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती आदि। शेष लगभग 16,000 महिलाएं नरकासुर नामक असुर द्वारा कैद की गई थीं। युद्ध में नरकासुर के वध के बाद, जब ये महिलाएं मुक्त हुईं, तो समाज ने उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया। उस समय के सामाजिक नियमों के अनुसार, वे किसी से विवाह नहीं कर सकती थीं और तिरस्कार का जीवन जीने को मजबूर होतीं। कृष्ण ने उन्हें सम्मान और सुरक्षा देने के लिए अपने नाम से विवाह का रूप दिया। यह कदम सांसारिक भोग नहीं, बल्कि सामाजिक पुनर्वास और करुणा का प्रतीक था। इससे उनका सम्मान पुनः स्थापित हुआ और वे समाज में सम्मानित जीवन जी सकीं।